मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

20 June 2015 ·

यक्ष -
योग आसनों में सबसे महत्वपूर्ण परन्तु विचित्र क्या है ?
युधिष्ठिर -
इस प्रश्न का सटीक उत्तर सिर्फ कृष्ण दे सकते है क्योंकि वे योगिराज हैं | मेरी जानकारी इस मामले में सीमित है अतः मैं अपने सामान्य ज्ञान से सिर्फ एक विशेषता ऐसी बता सकता हूँ जिसकी व्यंजना यदि समझी जाये तो यह अत्यंत विचित्र और विडम्बनापूर्ण है |
यक्ष - तो वही बताओ राजन !
युधिष्ठिर -
हे यक्ष ! आपने भी लक्ष्य किया होगा कि योग के अधिकांश महत्वपूर्ण आसनों में , नौका , धनु , पवन , वृक्ष , मयूर , मत्स्य , उष्ट्र , वृश्चिक ..आशय यह कि सजीव और निर्जीव सभी की आकृति या उनकी विशेष मुद्राएं ग्रहण की गईं हैं परन्तु जितना मैं जानता हूँ महत्वपूर्ण योग आसनों में प्रकृति के सबसे उन्नत जीव यानि मनुष्य की सिर्फ दो मुद्राएं ही विशेष रूप से ग्रहण की गई है ......एक गर्भस्थ शिशु की मुद्रा और दूसरी शव मुद्रा .....मनुष्य का जीवन कहीं नहीं है अर्थात मानव समाज के विकास के दौरान श्रमजीवी और बुद्धिजीवी मनुष्य के जीवन के सम्पूर्ण क्रिया व्यापार की कोई मुद्रा योग के आसनों में ग्राह्य नही .......गर्भ के बाद सीधे शव ...बीच का पूरा जीवन गायब ..यदि कहीं कहीं किसी आकृति /मुद्रा में इसके संकेत मात्र मिलते है तो वह मनुष्य के श्रमिक और बौद्धिक किसी क्रिया से मेल नही खाते .....
इस तथ्य की व्यंजना जब कभी इस रूप में समझने लगता हूँ तो यह मुझे अत्यंत विचित्र और विडम्बनापूर्ण लगता है कि योग जिस का उद्देश्य मानवमात्र की देह को नीरोग , स्वस्थ और मन को शान्ति और उन्नति प्रदान करना है उसी योग अभ्यास से वह अभ्यास क्यों गायब है जिसने मनुष्य को जानवर से इंसान बनाया ........

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