मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

18 June 2015 ·

यक्ष -
फेसबुक से तुम्हें सबसे बड़ी सीख क्या मिली है ?
युधिष्ठिर -
अव्वल तो जैसा यह माध्यम आभासी वैसी ही यहाँ दोस्ती आभासी है | यहाँ आदमी की उम्र चाहे जितनी हो लेकिन वह बिलकुल कच्ची उमर के प्रेमी प्रेमिका की तरह सार्वजनिक तौर पर पेश आता है यानि जिस रूप को वह दिखाना चाहता है उसी रूप में आता है और फिर उसी छवि का गुलाम हो कर रह जाता है ....इस लिहाज से यह फेसबुक कम और फेकबुक ज्यादा प्रतीत होती है .....
यक्ष -
यह तो जनरल बात हुई .....पर्टिकुलरली तुम्हे क्या सीख मिली ?
युधिष्ठिर-
मुझे फेस्बुकिया दोस्तों के बारे में बड़े सबक मिले हैं ...
यह कि , एफ बी फ्रेंड्स की मोटे तौर पर तीन केटेगरी होती है ..
पहली , उन दोस्तों की जिनका लिखा आप पढ़ना चाहते है और इन्वेरियब्ली उनकी वाल विजिट करते हैं .....
दूसरी , उनकी जिन्हें आप कई कारणों से चाहते हैं कि कम से कम वो हमारी वाल पे आये और हमारा लिखा हुआ पढ़ें ....
लेकिन अफ़सोस कि इन दोनों केटेगरी के लोग आपकी वाल पे नहीं आते ...बेहद निराश करते हैं ..
इसके अलावा बाकी बचे फेंड्स मिल कर एक तीसरी केटेगरी बनाते है .....
ये ही वो फ्रेंड्स होते हैं जो आपके दरवाजे पे आते है , हाल चाल पूछते है , कुछ कहते है , कुछ सुनते है , न बहुत बुद्धिजीवी होते है , न जाहिल लेकिन बिना किसी राग द्वेष के सहज भाव से आप से जुड़े रहते है |ये है तो फेसबुक हैं , ये न हो तो फेसबुक का रस खत्म हो जाए .......आज इस उत्तर के जरिये ऐसे दोस्तों को आदाब अर्ज करता हूँ ......
यक्ष -
और भी कुछ कहना है या जितना कहना था , कह दिया ?
युधिष्ठिर -
अरे हाँ ! फेसबुक पे आपको हमेशा और भी कुछ कहना होता है , जितना कहना था उतना कभी कहा नही जाता .....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें