मंगलवार, 13 अगस्त 2013

हमारी चेतना पे जो पर्दा पड़ा है

बुरा लगे या अच्छा लगे,  लेकिन , चाँद , सूरज , तारों , के दिखने , न दिखने , पूरा दिखने , आधा दिखने , कम दिखने , ज्यादा दिखने , को शुभ या अशुभ मानते रहेंगे  , ऐसी सामान्य रूटीनी खगोलीय घटनाओं के आधार पर जब तक हम तमाम तीज, त्योहारों , व्रतों को निर्धारित करते रहेंगे तब तक हम ब्रम्हांड के रहस्यों को विज्ञान के जरिये कितना भी बेपर्दा करते रहें हमारी चेतना पे जो पर्दा पड़ा है वह कभी नही हट पायेगा ..........

रविवार, 26 मई 2013

आधुनिक लौह शिशु ....बराए मेहरबानी ''थैलीसीमिया ''

कभी पाश ने कहा था '' सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना '' यकीनी तौर पर बिना सपने देखे कुछ भी जो आज से बेहतर हो ,तामीर करना नामुमकिन है वो चाहे एक अदद जिंदगी हो या फिर समाज | लेकिन उन आँखों का क्या ,जो सपने देखना तो चाहती है मगर, जिन्हें देखने का हौसला नहीं होता , जिन्हें जिंदगी यह इजाजत नहीं देती | अजीबोगरीब तो है , लेकिन सच है , इधर स्निग्धा , वरुण आदि बच्चों के हौसले के हवाले से कुछ बयार ऐसी बही है शहर में कि लगता है सपने हर आँख देख सकती है और तब तक देख सकती है जब तलक सीने में एक दिल धडकता है , लहू में हरकत और हरारत कायम है | मरने से पहले .....गम से निजात पाए क्यूं ...

लहू , जी हाँ ,ये बीमारियाँ लहू मांगती है, नितांत अभिधा में भी और इसकी व्यंजना भी कुछ ऐसी ही है |थैलीसीमिया , जिस रोग के बारे समाज में जागरूकता लगभग शून्य है आज किसी स्निग्धा , किसी .....की जिजीविषा और हौसलों के बहाने ही सही ,शहर में चर्चा का केंद्रबिंदु बन गया है , जिस रोग में शरीर का खून बनने के साथ ही साथ अपघटित होने लगता है , जिस रोग में रोगी के शरीर में चढ़ने वाले प्रत्येक यूनिट खून के साथ साथ उसका लोहा भी रोगी के शरीर में जमा होता जाता है और अनेकानेक अन्य विकारों की पैदाइश की जमीन तैयार करता है , ऐसे में फिर याद आते है पाश, यह कहते हुए कि '' तुम लोहे की बात करते हो , हमने लोहा खाया है '' ये लोहा खाने वाले बच्चे है जो तमाम दुश्वारियों से लोहा लेने का माद्दा रखते है |ये ही हैं आधनिक लौह शिशु .......

इतनी बुरी भी नहीं होतीं .....'' गालियाँ ''

स्वागतम में स्वागत है ..........
मजाहिया मिज़ाज है सो उम्मीद है बुरा न् लगेगा

गालियाँ इतनी बुरी भी नहीं होतीं जितना समझा जाता है ........
जरा कल्पना कीजिये बिना गालियों वाला समाज की , कितना बेमज़ा , कुंठित और नीरस होगा ..........
पढा है कहीं की हंगेरियन भाषा गालियों के मामले में सबसे समृद्ध है | लेकिन मुझे तो लगता है भारतीय लोक भाषा / बोलियों की मारक क्षमता बेमिसाल है |