सोमवार, 2 नवंबर 2015

१०८ / ३०/४/१५

यक्ष -
सरकार के क्या काम है ?
युधिष्ठिर -
सरकार के मुख्यतः चार काम है , जो निम्न है ..
१. यह बताना है कि किसान , न राम भरोसे रहे , न सरकार भरोसे |
२. आत्महत्या करने वाले को कायर और अपराधी करार देना |
३.घोषणा द्वारा स्पष्ट करना कि ऐसे अपराधियों की सरकार कोई मदद नही करेगी |
४. संसद की कैंटीन में किसान द्वारा उपजाए अन्न ग्रहण के बाद ' अन्नदाता सुखी भव ' का दस्तावेजीकरण करना ..ताकि सनद रहे |
क्योंकि होता यह है कि , मुंह से दिए गये बयान ऑटोमेटिकली खुद को तोड़ मरोड़ लेते है और मुंह से बाहर आते ही खुद सन्दर्भ से भी बाहर हो जाते है  |  बाद में बार बार बताने पर भी लोग मानते नही ... देर हो जाती है|

१०७ / ३०/४/१५

यक्ष -
क्या आत्महत्या करने वाले पे अपने बीवी बच्चों की जिम्मेवारी नही थी ?
युधिष्ठिर -
जी केवल और केवल उसी की थी .....न किसी पालनहार, न किसी तारनहार और न ही किसी सरकार की थी |

१०६ / ३०/४/१५

यक्ष -
क्या किसान की आत्म हत्या पलायन है
युधिष्ठिर -
जी हा , यह पलायन है | ऐसा पलायन , जो ईश्वरीय प्रकोप और सरकारी नीतियों की मार के डर से किया जाता है |

१०५/३०/४/१५

यक्ष - क्या आत्महत्या अपराध है ?
युधिष्ठिर - जी हाँ , यह एक विशेष किस्म का अपराध है जो न किसी लोभ से प्रेरित होता है और न ही किसी लाभ के लिए किया जाता है | यह अपराध किसी को कोई कष्ट भी नही पहुंचाता है |

१०४ / ३०/४/१५

यक्ष -
क्या आत्म हत्या कायरता है ?
युधिष्ठिर -
 जी ! आत्महत्या कायरता है परन्तु यह एक विशेष किस्म की कायरता है जिसमे कायर मौत से भी नहीं डरता |

१०३ / २९/४/१५

यक्ष -
यदि आत्महत्या अपराध है तो हत्या क्या है ?
युधिष्ठिर -
हत्या , आत्म हत्या जैसा अपराध रोकने की सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक न्याय व्यवस्था है  .....

१०२/ २९ /४/१५

यक्ष -
नेतागण आपदा का वास्तविक जायजा लेने के लिए हवाई उड़ान क्यों प्रिफर करते है ?
युधिष्ठिर -
इसका ठीक ठीक कारण अब तक अज्ञात है क्योंकि इतनी ऊंचाई से सिर्फ दो आँखों के भरोसे किसी आपदा का वास्तविक जायजा लेना लगभग असम्भव है |
फिर भी , पहला कारण यह हो सकता है कि आसमांन वाला होने मात्र से कुछ ईश्वरीय गुण आ जाते हों या फिर इससे उनके भीतर इश्वरत्व प्राप्त करने की दमित इक्षा तुष्ट होती हो |
दूसरा वैज्ञानिक कारण यह कि , पक्षी विज्ञान के अनुसंधानों के मुताबिक़ चीलों और गिद्धों की प्रजाति में यह गुण प्राकृतिक तौर से होता है | यह अनुसंधान सनातन धर्म में प्रतिपादित जन्म - जन्मान्तर के सिद्धांतों से और भी पुष्ट होता है | इस सिद्धांत के अनुसार पूर्व जन्म के कई गुण अगले जन्म में अंतरित हो जाते है | धर्म ग्रंथो में यह परिभाषा जन्मान्तर शीर्षक में वर्णित है |

१०१ /२८/४/१५

यक्ष - '' आप '' का भविष्य कैसा है ?
युधिष्ठिर -
आप का भविष्य बहुत उज्जवल और उर्ध्वमुखी है खास तौर से ताज़ा छंटनी के बाद | पहले उनके यहाँ प्रशांत भूषण जैसे लोग हुआ करते थे जिन्हें पार्टी में किसी मकाम तक पहुँचने के लिए सालों साल क़ानून की शिक्षा , उसका अभ्यास और जनहित में उपयोग किया जाना लगभग पूर्वशर्त थी |आज यह मकाम , यहाँ तक कि मंत्रिपद भी इस पार्टी में बिना पढे लिखे , फर्जी डिग्री के सहारे हासिल हो सकता है | इतने कम समय इतना योग्य हो जाने की टेक्नोलजी एक चमत्कारिक उपलब्धि है | इसके बाद दिल्ली वासियों के भीतर इस पार्टी के उज्ज्वल भविष्य को प्रति आस्था और बढ़ गई है |

१०० / २८/४/१५

यक्ष - 
सबकी पीड़ा एक है तो राष्ट्रीयताएँ अलग अलग क्यों है ?
युधिष्ठिर -
क्योंकि राष्ट्रीयताएँ सिर्फ हितों और संसाधनों का बंटवारा रोकने की व्यवस्थाएं है .....

९९ / २८/४/१५

यक्ष - आपदाएं , किस वर्ग का असली चेहरा उजागर करती है ?
युधिष्ठिर - व्यापारी वर्ग का......

९८/ २७/४/१५

यक्ष -
विडम्बना किसे कहते है ?
युधिष्ठिर -
जब ढांचे , इश्वर का महात्म्य तय करने लगे तो उसे विडम्बना कहते है .......उदाहरण के लिए आपदा के उपरान्त भगवान केदारनाथ  और पशुपति नाथ के महात्म्य वर्णन पर्याप्त हैं ,

९७ / २६ /४/१५

यक्ष -
लोग कह रहे हैं की चाँद उल्टा दिख रहा है , क्या लोग पागल हो गए हैं | पागल होने का सिम्पटम क्या है और यह लक्षण प्रकट होते ही क्या करना चाहिये
युधिष्ठिर-
लोग अपने हिसाब से ठीक कह रहे हैं , पगलाने का पहला सिम्पटम है चाँद उल्टा दिखना .......जिन्हें ऐसा दिख रहा है उन्हें फौरन पागलखाने मे भर्ती करना चाहिये ........ये भूकम्प , सुनामी आदि आपदाओं के स्वयम्भू भविष्य वक्ता और अफवाह फैलाने में माहिर होते है , ऐसे लोगो को जंजीर में जकड कर रखें ये कहीं जाने न पायें .....क्योंकि ये दुनिया के सबसे जीनियस लोग है ......जो कोई न कर पाया ये कूढ़मगज कर रह होते हैं .....और अफवाहें जहाँ सुनायी दिखाई पड़े ..वहीं गाड़ दें .....इतना प्रिकाशन फौरन लेना चाहिये

९६ / २६/४/१५

यक्ष -
तमाम आपदा और विपत्ति के बीच भी क्या शाश्वत और निरंतर है ?
युधिष्ठिर - विज्ञापन ......

९५ /२५ / ४ / १५

यक्ष -
पहला प्रस्ताव तो तुम बता चुके हो लेकिन गजेन्द्र की आत्महत्या के बाद बदली हुई परिस्थितियों में दिल्ली विधान सभा में अरविन्द केजरीवाल दूसरा कौन सा प्रस्ताव पास करवाएंगे ?
युधिष्ठिर -
जंतर मंतर के आस पास के सारे पेड़ों को कटवाने का | न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी ..

९४/ २५ /४/१५

यक्ष -
जंतर मंतर क्या है ?
युधिष्ठिर -
जंतर-मंतर एक सिद्धपीठ है जहाँ जंतर और मंतर दोनों के स्न्श्लेष्ण से अद्भुत रसायन तैयार किया जाता है | इस पीठ पर मत्था टेकने के पश्चात इस रसायन का पान करने से समस्त आर्यवर्त में प्रसिद्धि प्राप्त होती है |

९३/ २५ /४/१५

यक्ष -
T.R.P क्या है
युधिष्ठिर -
T.R.P , एक खास प्रजाति के कौवे को अंगेजी में T.R.P कहते है |.
यह वही कुख्यात और शातिर कौव्वा है , जो व्यक्ति के मन में यह विश्वास पैदा कर देता है , कि वह उसका कान ले उड़ा है और इस कुटिल काक कला से सम्मोहित हो वह , बजाय अपना कान चेक करने के , उस कौव्वे के पीछे भागने लगता है ......

९२ / २४/४/१५

यक्ष -
मध्य वर्गीय बुद्धि वैभव का बुद्धि वंचना में उत्परिवर्तन कैसे होता है ?
युधिष्ठिर-
आपकी प्रश्न कला के आतंक से आक्रान्त हुए बिना , मैं इसे मध्यवर्गीय भोलापन मात्र कहूँगा , क्षमा करें ... यह वास्तव में , उन राजनीतिक वक्तव्यों की रौ में बह जाने की क्रिया है , जिन वक्तव्यों के जरिये यह शिक्षा दी जाती है कि अलां फलां मुद्दों पर कोई राजनीति नही होनी चाहिये |जब कि यह वास्तविक राजनीतिक मुद्दे होते है जिन्हें वर्तमान राजनीति परिदृश्य से विस्थापित कर देना चाहती है |यह मुद्दे विशुद्ध राजनीतिक विमर्श और समाधान मांगते है |

९१ / २४/४/१५

यक्ष - किस प्रकार का पश्चाताप खतरनाक होता है ?
युधिष्ठिर - क्षणिक पश्चताप घडियाली आंसुओं खतरनाक होता है क्योंकि धीरे धीरे यह आवेग कम होने लगता है और अंततः आपको इससे इम्यून कर देता है | इसी क्रम में आपको इसका अभ्यास हो जाता है और आप सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए इस फूहड़ प्रहसन को बार बार दुहराने में सिद्धहस्त हो जाते हैं ......'' आशुतोष '' और आशुपश्चाताप दोनों से सतर्क रहना चाहिये

९० / २४/४/१५

यक्ष -
सबसे ज्यादा टी आर पी किसे मिलती है ?
युधिष्ठिर-
घडियाल को ......वो भी सिर्फ तब , जब वह रोता है |

८९ / २४ /४/ १५

यक्ष -
मेक इन इण्डिया के तहत कौन सी कम्पनी सबसे पहले अपना उद्योग लगाएगी ?
युधिष्ठिर-
फांसी का फंदा बनाने वाली ....इतना सम्भावना शील सेक्टर और अभी तक यह कुटीर उद्योग के हवाले ही है , जब कि देश में उच्च गुणवत्ता वाले फंदों की बेहद मांग है ....

८८ / २३ /४/१५

यक्ष - आधुनिक कर्ण किसे कहा जा सकता है ?
युधिष्ठिर -
अनिल अम्बानी ........
आधुनिक दुर्योधन से अपनी मित्रता के लिए यह आज भी बड़े से बड़ा त्याग कर सकता है |यहाँ तक की अपनी रसोई गैस सब्सिडी भी त्याग सकता है......

८७ /२१ /४/१५

यक्ष -
आज परशुराम जयंती है | क्या तुम भी परशुराम को पूज्य मानते हो , यदि हाँ तो क्यों ?
युधिष्ठिर -
जी मानता हूँ .......परशुराम मेरे पूज्य इसलिए हैं क्योंकि ..
.
१.
गुस्सा उनकी नाक पर निवास करता था | वह हर छोटी बड़ी चीज़ को नाक का सवाल बना लेते थे | इस स्वार्थी जगत में कितने लोग नाक के सवाल को इतना महत्व देते है |

२.
उन्होंने धरती को इक्कीस बार क्षत्रिय विहीन कर हमारा बहुत भला किया वरना कौरवों की सेना कितनी बड़ी होती कल्पना करना मुश्किल है |
३.
उन्होंने पिता के कहने पर अपनी माता का गला काटा था | आजकल कौन बेटा अपने बाप का कहा मानता है |
४.
हस्तिनापुर हस्तगत करने में उनके योगदान को हम पांडव कैसे भूल सकते है | उन्होंने ही कर्ण को शाप दिया था कि जब उसे ब्रह्मास्त्र की सबसे ज्यादा जरूरत होगी वह उसे भूल जाएगा ....यदि यह न होता तो ...
पांचवां और अंतिम तो नितांत निजी अभिरुचि के कारण .....वो यह कि उन्हें भी मेरी तरह कोंहड़ा बहुत पसंद था | जैसे ही उन्हें पता चला कि जनक की सभा में कोई कुम्हड़े की बतिया तक नही है उनका गुस्सा देखते ही बनता था .....परशुराम लक्ष्मण सम्वाद की यह अंतर कथा है , जो सिर्फ मुझे मालूम है .....

८६ / २१/४/१५

यक्ष - भक्ति क्या है ?
युधिष्ठिर - भक्ति , गरीबी की तरह ही एक मानसिक अवस्था है जिसमे भगवान के कह देने मात्र से ३०० का माल , १०० रु का हो जाता है | भक्ति , भगवान की सबसे बड़ी नेमत है ...यह दुःख में सुखी होने , पीटे जाने पर स्नेहिल स्पर्श का , गरियाए जाने पर प्रवचन का आस्वाद कराती है ......

८५ / २०/४/१५

यक्ष - अच्छे दिन के नारे के उत्पत्ति कैसे हुई ?
युधिष्ठिर - कलियुग की २१ वीं सदी के दूसरे दशक में हस्तिनापुर में भीषण सत्तासंघर्ष हुआ | नए उम्मीदवार को सफलता हेतु कई चीज़ों की दरकार थी लेकिन उसका खजाना बिलकुल खाली था , इसके पास न ही कोई ऐसा आदर्श पुरुष था जो जनता में कोई आस्था पैदा करता न नारे , न उद्धरण ....सो उसने देश और दुनिया भर की विरासतों में सेंध मारी शुरू की .....सरदार पटेल की प्रतिमा , नेहरू के उद्धरण , भगत सिंह के पगड़ी और भी न जाने क्या क्या .....
सूची काफी लम्बी अतः इस नारे के बारे में कुछ भी कहने के बजाय बस् एक कविता सुनाता हूँ .....
आ रहे हैं अच्छे दिन
-----------------------
सब कुछ बदलता है
कानून का पहिया बदल जाता है
बिना थमे |
बारिश के बाद बढिया मौसम
पलक झपकते ही
संसार उतार देता है
अपने मैले कपड़े
दस हजार मीलों तक
फैला है भूदृश्य
बेल बूटों से सुसज्जित
मुलायम धूप
मंद हवाएं , मुस्कुराते फूल |
ऊंचे ऊंचे पेड़ों से झरती पत्तियों
एक साथ चहक उठे सारे पंछी |
मनुष्य और पशु जाग उठे नवजीवन लेकर |
इस से बढ़ कर क्या हो सकता है प्राकृतिक ?
दुःख के बाद आती है खुशी |
खुशी , किसी के लिए जेल से रिहाई जैसी |
----- हो ची मिन्ह

८४ / १९/४/१५

यक्ष -
इतवार क्यों आता है ??
युधिष्ठिर -
इतवार , समाज में अपनी गढी गई छवि से बेहद क्षुब्ध था , गेरेगेरियन कैलेंडर की इजाद के बाद न जाने वह कौन सा मनहूस मरहला था कि, जब लोग यह मानने लगे के इतवार लोगों के भीतर निट्ठल्लेपन और आरामतलबी का भाव जगाता है | यही चेक करने इतवार खुद हर संडे आने लगा .....बिलकुल रियल टाइम चेकिंग ......इसके नतीजे चमत्कारिक रूप से उसकी गढ़ी गयी छवि से बिल्कुल इतर परिणाम देने वाले साबित हुए .......उसने खुद देखा कि दुनिया तो वास्तव में मुझ इतवार के भरोसे ही चल रही है .......बाकी दिन उसने लोगों को तमाम अलहदा कामों में जुटा पाया ......
बस् एक इतवार के आने से लोगों में अपने आप को वैल्यू करने का सेन्स डेवलप होने लगा है ........लोग घर परिवार के तमाम पेंडिंग काम निपटाने लगे और एक सामाजिक प्राणी के तौर पर अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत होने और अन्य समाजोपयोगी कामों में भी ध्यान देने लगे है ........वास्तविक छवि और गढी हुई छवि के फर्क को खुद टेस्ट करने के बाद अब इतवार बहुत खुश है , वह तो अब रोज़ आना चाहता है , लोग भी उसका स्वागत करने के लिए तैयार हैं परन्तु इतवार की लोकप्रियता से घबरा कर सारे ग्रह एक जुट हो उसके रास्ते की बाधा बने हुए है , जैसे ही इतवार घर से निकलता है सबसे पहले सोम नामक छोटा सा परन्तु अत्यंत प्रभावी उपग्रह उसका रास्ता रोक लेता है , उसे परास्त करते ही लाल पीले तेवर वाला मंगल .....ऐसे ही अंत में शनि महराज स्वयम ........परन्तु इतवार इन सारी बाधाओं को पार करते , सबसे लड़ते भिड़ते हमारे जीवन में प्रवेश करता है , इसलिए हमारे मन में , इतवार के इस कल्याणकारी रूप के सामने सहज ही नत होने का भाव जाग उठता है ......
ईतवार का आना समाज के व्यापक हित में कितना जरूरी है ......अब यह सबकी समझ में आने लगा है ..........इतवार का छवि भंजन अब हर संडे समारोहपूर्वक मनाया जाना प्रारम्भ हो चुका है | इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि मनुष्य अपने जीवन का हर महत्वपूर्ण काम इतवार के आने तक मुल्तवी रखता है ..... इतवार का आना एक मुहावरा सा बनता जा रहा है ........जैसे इतवार आने दीजिए , आपका काम कर देंगे पक्का .......

८३/१९/४/१५

यक्ष -
इतवार क्यों आता है ??
युधिष्ठिर -
इतवार , समाज में अपनी गढी गई छवि से बेहद क्षुब्ध था , गेरेगेरियन कैलेंडर की इजाद के बाद न जाने वह कौन सा मनहूस मरहला था कि, जब लोग यह मानने लगे के इतवार लोगों के भीतर निट्ठल्लेपन और आरामतलबी का भाव जगाता है | यही चेक करने इतवार खुद हर संडे आने लगा .....बिलकुल रियल टाइम चेकिंग ......इसके नतीजे चमत्कारिक रूप से उसकी गढ़ी गयी छवि से बिल्कुल इतर परिणाम देने वाले साबित हुए .......उसने खुद देखा कि दुनिया तो वास्तव में मुझ इतवार के भरोसे ही चल रही है .......बाकी दिन उसने लोगों को तमाम अलहदा कामों में जुटा पाया ......
बस् एक इतवार के आने से लोगों में अपने आप को वैल्यू करने का सेन्स डेवलप होने लगा है ........लोग घर परिवार के तमाम पेंडिंग काम निपटाने लगे और एक सामाजिक प्राणी के तौर पर अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत होने और अन्य समाजोपयोगी कामों में भी ध्यान देने लगे है ........वास्तविक छवि और गढी हुई छवि के फर्क को खुद टेस्ट करने के बाद अब इतवार बहुत खुश है , वह तो अब रोज़ आना चाहता है , लोग भी उसका स्वागत करने के लिए तैयार हैं परन्तु इतवार की लोकप्रियता से घबरा कर सारे ग्रह एक जुट हो उसके रास्ते की बाधा बने हुए है , जैसे ही इतवार घर से निकलता है सबसे पहले सोम नामक छोटा सा परन्तु अत्यंत प्रभावी उपग्रह उसका रास्ता रोक लेता है , उसे परास्त करते ही लाल पीले तेवर वाला मंगल .....ऐसे ही अंत में शनि महराज स्वयम ........परन्तु इतवार इन सारी बाधाओं को पार करते , सबसे लड़ते भिड़ते हमारे जीवन में प्रवेश करता है , इसलिए हमारे मन में , इतवार के इस कल्याणकारी रूप के सामने सहज ही नत होने का भाव जाग उठता है ......
ईतवार का आना समाज के व्यापक हित में कितना जरूरी है ......अब यह सबकी समझ में आने लगा है ..........इतवार का छवि भंजन अब हर संडे समारोहपूर्वक मनाया जाना प्रारम्भ हो चुका है | इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि मनुष्य अपने जीवन का हर महत्वपूर्ण काम इतवार के आने तक मुल्तवी रखता है ..... इतवार का आना एक मुहावरा सा बनता जा रहा है ........जैसे इतवार आने दीजिए , आपका काम कर देंगे पक्का .......

८२ / १९ /४/१५

यक्ष -
पाण्डु लिपि किसे कहते है ...क्या इसका तुम्हारे पिता से कोई सम्बन्ध है |
युधिष्ठिर -
जी हाँ .....पाण्डु लिपि , वह लिखित क्रिया है जिसके जरिये व्यक्ति अपना क्लेम दाखिल करता है जिसमे , अधिकाँश क्लेम स्वीकृत नहीं होते ...
इसका सर्वोत्तम उदाहरण हम पांडव स्वयम है .....हम पांडव , मूल पांडु-लिपि है जिसे हस्तिनापुर के प्रभु प्रकाशकों ने अस्वीकृत कर दिया है | हम प्रभु प्रकाशकों द्वारा निर्देशित संशोधन के दौर से गुज़र रहे है फिर भी , कत्तई आश्वस्त नही है | दुनिया की प्रथम ज्ञात पांडुलिपि , के अस्वीकृत होने के अपशकुन के कारण , कालान्तर में , पांडुलिपियों का प्रारब्ध अस्वीकार में परिणत हो गया |

८१ / १८/ ४/१५

यक्ष - भारतीय समाज किस व्याधि / विकार से सर्वाधिक पीड़ित है ?
युधिष्ठिर - शीघ्र-पतन से ....

८० / १८/४/१५

यक्ष -
आर्यावर्त में अच्छे दिन कब तक आयेंगे या इसमें अभी कोई संदेह है ..
युधिष्ठिर -
जिस प्रकार से घटनाएँ घट रही है उसे देखते हुए अच्छे दिन के बजाय मुझे तो दूसरे महाभारत के आसार दिख रहे हैं ...
यक्ष -
अपने कथन को उदाहरण सहित स्पष्ट करो ....
युधिष्ठिर -
इस वैज्ञानिक युग में , जब कि , पृथ्वी के कोने कोने का सर्विलांस आसानी से संभव है , जिसके लिए , मीडिया से लेकर पक्ष प्रतिपक्ष सबका खोजी अभियान जारी हो ... इतनी विकट चुनौती के बीच अज्ञातवास सफलता पूर्वक सम्पन्न कर लेना , निश्चित ही उनके पक्ष को अब और मजबूत करता है | इसके बाद भी हस्तिनापुर पर उनका क्लेम यदि प्रापरली सेटिल नहीं हुआ तो दूसरे महाभारत के अलावा क्या विकल्प है .......
उधर , दूसरे पक्ष का रुख भी तो देखें .....उनके इरादे कहीं से सेटलमेंट के पक्ष में नहीं दीखते | इसी अज्ञातवास के बीच ही उनके दलपति घूम घूम कर , यूरेनियम सहित तमाम लडाकू विमान महंगे दामों में इकठ्ठा करने मे जुट गए है | और तो और , अज्ञातवास के सफल होने की सूचना मिलते ही मानो किसी अज्ञात भय की आशंका में फौरन हस्तिनापुर लौट आये है ..............
युद्ध में जीत किसी की हो , जनता के लिए तो हर युद्ध हमेशा बुरे दिन ही लाता है ..

७९ / १६/४/१५

यक्ष -
पुनः इकठ्ठा हुए जनता दलों और '' आप '' में क्या चीज़ कामन होने की सम्भावना है ....
युधिष्ठिर - आप बीती.....

७८ / १६/४/१५

यक्ष -
पूर्व के प्रधानों और वर्तमान प्रधान के विदेशी दौरों में क्या बुनियादी अंतर है ?

युधिष्ठिर -
पूर्व के परधान और आज के परधान की यात्राओं में अनेकों ऐसे अंतर हैं जिन्हें बुनियादी माना जा सकता है | जैसे पहले जब परधान जाते थे तो अपना सतुआ पिसान बाँध के जाते थे , वहाँ उनका स्वागत करना तो दूर ..पहुँचते ही खुद ही सवारी ढूँढना पड़ता था ...किस्मत अच्छी होती तो ऑटो वगैरह मिल जाता वरना पैदले रास्ता नापना पड़ता | कोई अपना हित नात बुला लेता तो भोजन भजन का इंतजाम हो जाता नहीं तो कहीं रोड के किनारे लिट्टी चोखा खुद ही लगा के खाना पड़ता | न टी वी , न अखबार अ रेडियो किसी पर ढंग से एक समाचार होता .....पौने नौ की न्यूज़ अगर छुट गई तो पाता भी चलता कि वहाँ कोई समझौता ओम्झौता भी हुआ हवाया है | वैसे भी वो किसी काम लायक तो होते नहीं थे ..देश तो भगवान भरोसे चलता था ....पहले वाले परधान लोग थोडा क्रैक भी थे ,जहाँ जाते, गुट निरपेक्षता का राग अलापते उन्हें इतना भी नही पता होता था कि धूप में चप्पल चटकाने का समय बीत चुका बल्कि चप्पल सर माथे लगाने से ही राम राज्य आना है लेकिन कौन समझाएं ......आज के परधान डायरेक्ट गुटबाजी का गीत गाते है , बेसुरे न हो जाएँ इसलिए सुखविंदर जैसे प्रोफेशनल्स उनकी तरफ से ये काम करते है | सारे जहाँ को जब तक चिल्ला चिल्ला के न बताया जाए कि हम हैं इण्डिया वाले तब तक पता कैसे चलता कि इण्डिया से कोई आया है ......यहीं पुराने परधान माट खा जाते थे | आज जब नेतागिरी एक बदनाम पेशा हो गया है तब नए वाले ने इसे भांप लिया फौरन रॉक स्टार की इमेज बना ली | पूरी मीडिया इन्हें रॉक स्टार बुलाती है और जगह जगह पूरा रॉक शो आयोजित होता है तो थोडा भीड़ हो जाती है | प्रधान जी को तो थोडा एक्टिंग वैक्टिंग करनी होती है बस् ....यही कलाकार अगर अकेले कार्यक्रम करते है तो इस से दस बीस गुणा भीड़ होती है लेकिन उसका टिकट लगता है | कार्यक्रम कंट्रोल में रहे इसके लिए परधान जी के नाम से प्रोग्राम प्रचारित होता है ताकि भीड़ न उमड़ पड़े और एंट्री भी फ्री ....

७७ / १६/४/१५

यक्ष -
चुनावी गणित , यह गणित की कौन सी फील्ड है ?
युधिष्ठिर -
यह कोई गणित नही है | यह रीसाइक्लिंग की आधुनिक कला है , इसमें ऐतिहासिक महत्व की चीज़ों के साथ साथ पुरानी धुरानी, अनुपयोगी , टाइम बार्ड चीज़ों को भी , रिसाइकिल कर , नई पैकेजिंग में , जनता के सामने पेश कर बेचा जाता है .......

७६ / १५/४/१५

यक्ष - आर्यावर्त के प्रधान कनाडा क्यों गए है ?
युधिष्ठिर - प्रधान जी कनाडा के प्राइम मिनिस्टर को राष्ट्रवाद का क्रैश कोर्स करवाने गए है |
यक्ष - प्रधान जी , दक्षिणा में क्या लेंगे ?
युधिष्ठिर - दक्षिणा में वह कनाडा के पी एम से कनाडा के क्युबेक प्रांत को राष्ट्र का दर्ज़ा खत्म करने और वहाँ बार बार होने वाले रिफरेंडम पर रोक का वादा करवाने वाले है |

७५ / १४ /४/१५

यक्ष - स्वराज सम्वाद क्या है ?
युधिष्ठिर - स्वराज सम्वाद '' आप '' की आँख की बिलनी है .....

७४ / १४/४/१५


७३ / १४ / ४/ १५

यक्ष -
बाबा साहेब कौन हैं ..?
युधिष्ठिर -
बाबा साहब , आर्यावर्त के पुश्तैनी गाँवों के उन घरों की थूनियों और धरनियों के जखीरे का नाम है , जो अब गिर चुके है | यह पूरा गांव ही उजाड पड़ा है | इतिहास , जब राज -राजेश्वरों के युग में प्रवेश कर रहा था तब हस्तिनापुर के राजप्रासाद के चाकरों ने इसकी हिफाज़त की जिम्मेवारी ली और इसे अपने पास आज तक सम्भाल के रखा है | आज भी जब कभी , किसी भूडोल के प्रभाव में इस राज प्रसाद की नींव दरकने लगती है , कंगूरे हिलने लगते है तो इसे बचाने में यही उपकरण काम आते हैं |

७२/ १३/४/१५

यक्ष -
विश्व के दो प्राचीन आर्य प्रदेशों , आर्यावर्त और जर्मनी के बीच कौन सा सबसे महत्वपूर्ण समझौता हुआ है ?
युधिष्ठिर -
आर्यावर्त और जर्मनी में सबसे महत्वपूर्ण समझौता बिलकुल गोपनीय है | यह समझौता वसुधैव कुटुम्बकम के सार्वभौम सिद्धांत के तहत किया गया है | जर्मनी में आर्य कुटुंब की सबसे बड़ी समस्या इस कुटुंब की नेगेटिव ग्रोथ रेट है , जिसके कारण जर्मनी में आर्य-जनसंख्या लगातार कम होती जा रही है | अतः , आर्यावर्त ने जर्मनी को दस बच्चे पैदा करने की तकनीक अंतरित करने और इस हेतु विषय विशेषज्ञों और तकनीशियनों की फ़ौज को साध्वी प्राची और साक्षी महराज के नेतृत्व में भेजने का फैसला किया है |

७१ /१२ /४/१५

यक्ष -
मताधिकार छीन लेने के फायदे क्या क्या है ?
युधिष्ठिर -
पहले यह समझ ले कि मताधिकार न होना और मताधिकार छीन लेना दो अलग अलग अवस्थिति है | मसलन , १८ साल से नीचे मताधिकार नहीं होता लेकिन उनके और बाकी लोगों में कोई फर्क नहीं होता सिवाय मत देने के अधिकार के | मताधिकार छीन लेने से व्यक्ति का स्टेटस बिलकुल अलग हो जायेगा | मताधिकार छीन लेने के तो बस् फायदे ही फायदे हैं | लोकतांत्रिक प्रणाली में लोगो के मतो से ही संसद के सदस्य चुने जाते हैं और संसद गठित होती है | संसद कानून बनाती है और उन कानूनों के पालन के लिए संसद देश की सरकार भी बनाती है |
जिन लोगों को मताधिकार नहीं होगा , उनके लिए संसदीय प्रणाली में कोई भी कानून बाध्यकारी नहीं होगा क्योंकि ऐसी संसद तो उन के द्वारा चुनी ही नहीं गयी है .....लिहाजा व्यावहारिक रूप में , उन्हें न तो टैक्स देना पड़ेगा , न ही उनके ऊपर आई पी सी , सी आर पी सी के प्रावधान लागू होंगे वगैरह वगैरह ......ऐसा इसलिए कि सरकार के पास उनके ऊपर शासन करने का , न तो विधिक , न ही नैतिक और न ही लोकतांत्रिक अधिकार होगा |
मजे की बात तो यह कि उन लोगो के सारे मौलिक अधिकार बाकायदा सुरक्षित रहेंगे क्योंकि राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा राज्य की जिम्मेवारी है चाहे उसके पास मताधिकार हो या न हो ...... .....यह मृत्युलोक में स्वर्गिक अनुभूति जैसा है ........

७० / १२ /४/१५

यक्ष -
आई पी एल की हर टीम के साथ एक इंटेग्रिटी आफिसर क्यों नियुक्त किया गया है ?
युधिष्ठिर -
ताकि इस रंग बिरंगी , बंदरबांट में किसी बंदर के साथ अन्याय न हो |

६९ /१२ /४/१५

यक्ष -
टाइम्स नाऊ क्या है ?
युधिष्ठिर -
यह एक एक स्पोर्ट्स चैनल है जिसमें प्राइम टाइम में , डब्लू डब्लू ई फाईट दिखाई जाती है | इसमें खिलाड़ी घूँसा लात जो भी करना होता है उसे मुँह से करते है | इसकी खासियत यह है कि इसमें रेफरी खुद एक पक्ष लेकर सबसे ज्यादा लात घूँसा चलाता है , फाउल की सीटी भी बजाता है और फैसला भी देता है |

६८ / ११ /०४ /२०१५

यक्ष -
कश्मीरी पंडितो की समस्या क्या है और इसका समाधान कैसे हो सकता है ??
युधिष्ठिर -
कश्मीरी पंडितो की समस्या वास्तव में एक रोग है जिसे पोलिटिकल डायबिटीज़ कहते है | यह राज रोग है | इसलिए , होता तो यह यह राज करने वालों को ही है लेकिन पूरा परिवार इस वज़ह से हलकान रहता है | इस रोग के लक्षण पहले से दिखाई देने लगते है | राज्य पर कब्जा जमाने के युद्ध के दौरान सेनापतियों के रक्त में कश्मीर पंडितों के प्रति मिठास का स्तर बढने लगता है | इस मिठास के बाहरी लक्षण फौरन दिखने लगते है लेकिन सत्ता की भूख में वह इस से परहेज़ नहीं करता है |
राजा बनने के बाद यह खतरनाक लेवल पर हो जाती है | चक्कर आने लगते है , आँखों पर असर के कारण डायबेटिक रेटिनोपैथी हो जाती है | आंखें कमजोर हो जाती है , विजन धुंधला जाता है | फिर जब वह इसके इलाज हेतु जाता है , तब उसे पता चलता है कि यह रोग तो असाध्य है , अब ज्यादा से ज्यादा इसे सिर्फ मैनेज किया जा सकता है | उसके लिए भी दवा के साथ साथ काफी एक्सरसाइज़ भी करना पड़ता है | आपने देखा ही होगा कि , ताज़ा ताज़ा डायबेटिक सबसे जादा हाथ पैर पटकता है , शाही बाग में दौड़ लगाता , योग व्यायाम करता और लोगों को भी योग की सलाह देता दिखता है |
धीरे धीरे वह इस रोग के साथ साथ जीने का अभ्यस्त हो जाता है | वह तब अपनी खुराक में इस मिठास को पैदा करने वाले तत्वों से परहेज़ करने लगता है | नए राजा का राजरोग अभी प्रथम चरण में है | इस कारण ही वह इतनी ज्यादा एक्सरसाईज और योग वोग करता हुआ दिख रहा है |
कुछ रोग ऐसे होते हैं जिन्हें समय रहते डायग्नोज़ कर कंट्रोल न किया जाए तो असाध्य हो जाते है .........