रविवार, 26 मई 2013

आधुनिक लौह शिशु ....बराए मेहरबानी ''थैलीसीमिया ''

कभी पाश ने कहा था '' सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना '' यकीनी तौर पर बिना सपने देखे कुछ भी जो आज से बेहतर हो ,तामीर करना नामुमकिन है वो चाहे एक अदद जिंदगी हो या फिर समाज | लेकिन उन आँखों का क्या ,जो सपने देखना तो चाहती है मगर, जिन्हें देखने का हौसला नहीं होता , जिन्हें जिंदगी यह इजाजत नहीं देती | अजीबोगरीब तो है , लेकिन सच है , इधर स्निग्धा , वरुण आदि बच्चों के हौसले के हवाले से कुछ बयार ऐसी बही है शहर में कि लगता है सपने हर आँख देख सकती है और तब तक देख सकती है जब तलक सीने में एक दिल धडकता है , लहू में हरकत और हरारत कायम है | मरने से पहले .....गम से निजात पाए क्यूं ...

लहू , जी हाँ ,ये बीमारियाँ लहू मांगती है, नितांत अभिधा में भी और इसकी व्यंजना भी कुछ ऐसी ही है |थैलीसीमिया , जिस रोग के बारे समाज में जागरूकता लगभग शून्य है आज किसी स्निग्धा , किसी .....की जिजीविषा और हौसलों के बहाने ही सही ,शहर में चर्चा का केंद्रबिंदु बन गया है , जिस रोग में शरीर का खून बनने के साथ ही साथ अपघटित होने लगता है , जिस रोग में रोगी के शरीर में चढ़ने वाले प्रत्येक यूनिट खून के साथ साथ उसका लोहा भी रोगी के शरीर में जमा होता जाता है और अनेकानेक अन्य विकारों की पैदाइश की जमीन तैयार करता है , ऐसे में फिर याद आते है पाश, यह कहते हुए कि '' तुम लोहे की बात करते हो , हमने लोहा खाया है '' ये लोहा खाने वाले बच्चे है जो तमाम दुश्वारियों से लोहा लेने का माद्दा रखते है |ये ही हैं आधनिक लौह शिशु .......

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