शुक्रवार, 22 मई 2015

यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद -65 /10 /04/15

यक्ष - सुलतान अजलान शाह कौन है ?
युधिष्ठिर- सुलतान अजलान शाह एक CUP है ...
यक्ष - और आई पी एल क्या है ?
युधिष्ठिर - CUPBOARD...

यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद -64 /09/04/15

यक्ष -
वह कौन से लोक कलाकार हैं जो आज भूख से मर रहे हैं परन्तु उनकी कला में क्रांतिकारी विकास हो रहा है ?
युधिष्ठिर -
बहुरूपिये ............
रूप बदलने की कला में जितना विकास हो रहा है उतना ही बहुरूपियों का विनाश | विकास और विनाश का अजब गज़ब दुर्योग ......

यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद -63 /09/04/15

यक्ष - 
चमत्कार क्या है ? 
युधिष्ठिर - जेड + सुरक्षा कवर लिए दिये लापता हो जाना ....

यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद -62 /09/04/15

यक्ष -
बूढ़ी और अशक्त गायों का उपयोग क्या हो सकता है ?
युधिष्ठिर -
बूढ़ी और अशक्त गायें अत्यंत उपयोगी हैं | 
इनका उपयोग ध्रुवीकरण करने और वोट-बैंक बढाने में हो सकता है ....

यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद -61 /09/04/15

यक्ष - 
केजरीवाल के समर्थक अपनी अपनी चीज़ें वापस मांगने लगे है | ऐसे में केजरीवाल को किस मांग से सबसे ज्यादा डर लग रहा होगा ? 
युधिष्ठिर - 
केजरीवाल सबसे ज्यादा भयभीत इस से होंगे कि कहीं दिल्ली की जनता उनसे मेहर की रकम न वापस मांग ले........वो भी पिछली बार का बकाया जोड़ कर ...

यक्ष - युधिष्ठिर सम्वाद 60/ 07/04/2015

यक्ष - 
खेती और उद्योग में क्या अंतर है ?

युधिष्ठिर - 
वही , जो अंतर आलू और चिप्स में है .....जो टमाटर और केचप में है .

यक्ष - युधिष्ठिर सम्वाद ५९/ ०७/०४/१५

यक्ष -
फेस बुक पे सबसे सामान्य और सबसे अनूठा स्टेट्स क्या होगा ?
युधिष्ठिर -
यह कोई मुश्किल नहीं , दोनों एक भी हो सकता है ..और एक वाक्य में भी हो सकता है
यक्ष -
ऐसे स्टेट्स का उदाहरण दो ..
युधिष्ठिर -
आज मेरा जन्मदिन नहीं है ..

यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद -58/06/04/15

यक्ष -
हे राजन ! तम्बाकू खाने पीने के क्या क्या फायदे हैं ....
युधिष्ठिर -
अनेकों फायदे है परन्तु उन फायदों को गिनाने का क्या फायदा जिसे आजकल मीडिया में लोकतंत्र के मंदिर के पुजारी प्रसाद की तरह बाँट रहे है | ..सो अज्ञात फायदे बता रहा हूँ
.
पहला यह है कि यह आपके भीतर आकस्मिक ऊर्जा का स्त्रोत उत्पन्न कर देता है | तलब लगने पर आपके भीतर हनुमान सी ऊर्जा आ जाती है , इसके लिए आप समुद्र लांघ सकते है , परबत उखाड सकते हैं | आप का मन कहेगा .....
का चुप साधि रहा बलवाना , आधी रात स्टेशन से तनी गुटका तो लाना ...( और आप चल देंगे )
दूसरा ये कि आपके भीतर लोगों की नज़र से बचने के नुस्खे और हुनर दोनों पैदा हो सकते है यानि आप एक बेहतर जासूस हो सकते है |
तीसरा , आप घर के हर कोने अंतरे को उपयोगी बना देते है ...
चौथा , ये कि यदि आप इसे छोड़ देते हैं तो आप , बहु-उद्धृत , जिन्दा मिसाल बन सकते है , बीवी की नजर में आप अचानक बहुत महान हो जाते है , उसकी मोहब्बत में फर्क साफ़ दिखाई पड़ने लगेगा जिसे आप महसूस कर सकते है , बच्चों के लिए आप एक आदर्श पिता यानि वो तमाम दुर्लभ चीज़ें आप हासिल कर सकते है जो आप जैसे नालायक ने खुद भी कभी सपने में नही सोचा होगा ........बस् इसके लिए पहले इस अमल को अपनाना होगा .....हाँ , इसके बाद आप किसी को कहीं भी प्रवचन भी दे सकते है ..........
बुराई एक .........फायदे अनेक ......

रविवार, 17 मई 2015

१७/५/१५

लाजिम है कि हम भी फेंकेंगे .......हम फेंकेंगे .......4 / 15
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आजकल , मेरे दौरों से कुछ लोगों का हाजमा बिगड़ गया है | इसलिए उन्हें हाजमोला का डोज़ देना बहुत जरूरी हो गया है | बदहजमी की शिकार इस जमात को बता दूं कि मेरा विश्व भ्रमण , मेरा आकाश-आकर्षण आदि , यूँ ही नहीं है, इसके पीछे ठोस भौतिक , धार्मिक - आध्यात्मिक कारण हैं | सबसे पहले , मैं भौतिक कारणों का खुलासा कर दूं क्योंकि औसत या औसत से कम बुद्धि वालों को ठोस बातें आसानी से समझ में आती हैं | इस सनसनी पसंद जमात के लिए सबसे पहले एक झन्नाटेदार खुलासा भी लगे हाथ करता चलूं |
मितरों ! आप सब के लिए यह अबूझ होगा परन्तु बता दूं कि बचपन से , राहुल , मुझे बहुत प्रिय रहे है | इस महान देश में ,एक नही दो नामचीन राहुल हुए हैं और दोनों 20 वीं सदी के है और दोनों मुझे बहुत प्रिय हैं | ये , दूसरा वाला नम्बर दो राहुल आजकल कुछ ज्यादा बोल रहा है , नित नए नए सवाल उठा रहा है और हमसे जवाब मांग रहा है | इस राहुल का यह रूप बिलकुल अलग है परन्तु मुझे बहुत भा रहा है | उसे मैं उसे कोई जवाब इसलिए नही देता क्योंकि एक लिहाज़ से यह मेरा गुरुभाई भी है | हालांकि , मेरे कई गुरु हैं परन्तु हर गुरु से मैंने केवल एक ही सूत्र सीखा और आगे बढ़ गया | अपने गुरुओं शिक्षाओं का प्रसार करने के बजाय उसे सीमित करने का यह अजूबा मैंने किया | यह कारनामा सिर्फ मेरे ही बस की बात है | पहले वाले राहुल मेरे गुरु हैं जो जाति से ब्राह्मण है और जिन्होंने मुझे विश्व भ्रमण का सूत्र दिया | जिसे मैंने गाँठ में बाँध लिया | बचपन में कभी मैंने उनका लिखा एक लेख पढ़ा '' अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा '' बस तब से मैंने इसे जीवन दर्शन मान लिया |आजकल के मेरे दौरे, मेरे गुरु की दी हुई सीख का ही परिणाम है | नम्बर दो , राहुल मेरा गुरुभाई , इन अर्थों में है कि उसके भी ज्ञान चक्षु विदेश यात्रा के बाद ही खुले | इससे भी इस सूत्र के अकाट्य होने का प्रमाण मिलता है |
मितरों ! विदेश यात्राये , आँखें खोलने के लिए जरूरी हैं | जब भी मैं विदेश यात्रा करता हूँ तो मेरी आंखें खुली की खुली रह जाती हैं | व्यक्ति को हमेशा आँखें खुली रखनी चाहिए | उसे खुली आँखों से दुनिया देखने का शउर पैदा करना चाहिए यहाँ तक की खुली आँखों से उसे सपना भी देखना चाहिए | मैं इसलिए हमेशा दिन में सपने देखता हूँ क्योंकि दिन में आँखें खुले होने की बायलोजिकल गारंटी होती है | दिन में स्वप्न यानि दिवास्वप्न का संसार , अद्भुत होता है | आप भी इसका आस्वाद कर सकें इसलिए आप सब को भी मैं दिवा स्वप्न दिखाने की कोशिशों में अहर्निश लगा रहता हूँ | पहला मौका मिलते ही व्यक्ति को दिवास्वप्न देखना चाहिए | आज कल हम और मेरा गुरुभाई दोनों इसी काम में लगे है |यह तो थी ठोस भौतिक वज़ह |
इस के बाद धार्मिक और आध्यात्मिक कारणों पर आता हूँ | अपने भ्रमण प्रेम के बारे में इसके लिए मुझे कुछ और तथ्य आपसे साझा करना लाजमी हैं | उपर जो कारण मैंने बताये वह तो दुनियावी कारण थे | इससे ज्यादा महत्वपूर्ण कारण तो मेरी कुंडली और हस्त रेखाओं में छिपा है जिसे कोई ज्ञानी ध्यानी ही जान सकता है | मैं आपको बताता चलूं , कि मैं बचपन से ही नियतिवादी और नसीबवादी रहा हूँ | यह संस्कार मुझमें पूर्वजन्मों से ट्रांसफर हो कर आया है | यह इश्वर की ट्रांसफर पालिसी है जिस पे हम मनुष्यों का कोई हस्तक्षेप सम्भव नही | इसके अलावा , मेरा पूरा परिवार अत्यंत धार्मिक , घोर कर्मकांडी और भाग्यवादी रहा है | मेरी माँ मुझे बताया करती थी की जब मेरा जन्म हुआ तब फौरन उन्होंने इलाके के सबसे बड़े पंडित जी को बुलवा कर मेरा जन्मांग चक्र बनवाया | जन्मांग चक्र के आधार पर मेरी कुंडली काशी के किसी बड़े पंडित से बनवाया | जब मैं मात्र दो वर्ष का था तो वह पंडित जी मेरे घर पधारे | उन के दर्शन की की धुंधली स्मृति आज भी मेरे जेहन में है | घर के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने मेरी कुंडली और पांवो में चक्कर देख उसी वक्त बताया था कि बालक की कुंडली में राजयोग है और पाँव के चक्कर बताते हैं कि यह चक्करवर्ती सम्राट बनेगा | उन्होंने बताया कि चक्रानुसार बालक का राशिनाम ' इ ' वर्ण से होगा | माँ ने उनसे तत्काल आग्रह किया कि वाह लगे हाथ मेरा नामकरण भी कर दें | सो उन्होंने कर दिया |
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मेरे जन्म के कुछ वर्षों बाद ही देश में राजाओं का राज खत्म हो गया | मेरे घर वालों को लगा कि उनके अरमानों पर अब पानी फिर गया परन्तु उन भोले भाले लोगों को यह नहीं पाता था कि कोई भी तन्त्र बदलते बदलते , बदलता है | बहुत दिनों तक सांस्कृतिक तौर पर हम वही तन्त्र जीते है | इसका प्रमाण जल्द ही मिलने लगा | लोकतंत्र के नाम पर एक प्रच्छन्न राजतन्त्र अपने छद्म वैभव के साथ बाकायदा मौजूद था | अब राजा का पदनाम बदल कर प्रधान मंत्री हो चुका था और विधिक प्रधानमंत्री , प्राविधिक रूप से प्रधान सेवक के तौर पर खुद को प्रस्तुत करने लगा था | जनता को भरमाने की लोकतान्त्रिक कला पर देवता गण प्रसन्न थे | इश्वर का आशीर्वाद तो साथ था ही | जो दरिद्र , पहले नारायण हुआ करता था वही जनता अब जनार्दन की संज्ञा से विभूषित थी |
खैर ! मैं बता रहा था कि राज तन्त्र के रूपान्तरण से जो तात्कालिक निराशा मेरे परिवार में पैठी थी वह अब दूर हो चुकी थी | हालांकि मैं सिर्फ दो वर्ष का था लेकिन अपनी विलक्षण स्मृति का क्या करूं | मेरी स्मृति है ही कुछ ऐसी कि वह मुझे रोज़ नयी नयी जानकारियों से परिचित कराती है | मेरी प्रखर मेधा, अद्भुत , अनूठी विश्लेषण पद्धति और भाषणों के चमत्कारिक प्रभाव से तो आप पहले से परिचित है | आप तो जानते हैं कि मैं कितने वर्षों से राजनीति में हूँ और न जाने कितने चुनाव फेस कर चुका हूँ परन्तु जब मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव आया तो मेरी स्मृति ने मेरा कितना साथ दिया | मेरे मस्तिष्क को झकझोर कर उसने बताया कि मैं बचपन में चाय बेचता था | बस् फिर क्या था मैंने पूरी दुनिया को यह दिखा दिया कि चाय - यान से शुरू हुई यात्रा कैसे वायु - यान की यात्रा में परिवर्तित हो सकती है | तो यह था मेरी स्मृति का कमाल | अब आज मैं अपनी स्मृति संसार का एक और अजूबा आपको बताना चाहता हूँ |
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तो मैं , कह रहा था कि वो काशी वाले पंडित जी बहुत पहुंचे हुए थे , कुंडली निर्वचन से लेकर हस्तरेखा पर प्रवचन समान अधिकार से दे सकते थे | उस रोज़ जब वह घर आये थे तो माँ ने मेरा हाथ भी उन्हें दिखाया और उन्हें मुझे गुरुमंत्र भी देने को कहा | पंडितजी ने बाकी जो भी बताया हो वह तो फिलहाल याद नही परन्तु उन्होंने मेरे कान में जो फूंका वह अक्षरशः मुझे आज भी याद है | वह मंत्र उस वक्त से ही मेरा जीवन मंत्र है | मेरे तमाम दौरे , मेरी हवाई यात्राएं , मेरा आकाश के प्रति आकर्षण सब इसी मंत्र की देन है | जब कभी मैं मंच पे होता हूँ तो भी दस हाथ जमीन से ऊपर होता हूँ और आपने गौर किया होगा कि मैं बाते भी हवा में करता हूँ और मेरी बातें भी कितनी हवा हवाई होती हैं | होती हैं कि नही ....होती हैं .....| यह तो होनी है जो हो रही है | यह मेरे गुरु के मंत्र का प्रभाव है कि मेरा एक पैर मंच या कारपेट पर होता है तो दूसरा हवाई जहाज़ में ....
.मैं बहुत मजबूर हूँ , मितरों ! लेकिन मेरी मजबूरी का नाम महात्मा गांधी नही है जिन्हें अंग्रेजों ने , ट्रेन से उठा कर जमीन पर पटक दिया गया था | मेरी मजबूरी का नाम मेंरे उन दो गुरुओं से जुड़ा है जिन्होंने जमीन से उठा कर मुझे आकाश में फेंक कर पहुंचा दिया | इसलिए , फेंकना आज मेरे लिए सिर्फ कला भर नही है , यह मेरा जीवन दर्शन भी है | सो हम पे लाजिम भी है कि हम फेंके ......
लेकिन फिर भी मितरों हम सब कुछ तो नही फेंक सकते न | मैं भला कैसे फेंक दूं उस गुरुमंत्र को , जो मेरे जेहन में पैबस्त है , कि जब उन्होंने हौले से मेरे कान में मुझे मेरे राशिनाम से सम्बोधित करते हुए कहा ............
'' इब्न बतूता '' !
" आपके पाँव देखे , बहुत हसीन हैं , इन्हें जमीन पे मत उतारियेगा , मैले हो जायेंगे ......''
मितरो ! मैं क्या करूं ......मैं महान जरूर हूँ , मगर अपने गुरुओं की शिक्षाओं का गुलाम भी हूँ ...एक गुरु , जिन्होंने मेरा कान फूंका और हर वक्त हवा में उड़ते रहने की रूहानी वजह दी दूसरे गुरु राहुल जिन्होंने मुझे भ्रमण की भौतिकवादी प्रेरणा दी .....इन दोनों को मेरा प्रणाम ...अब मुझे एक और गुरु की तलाश भी करनी है जो हो तो विदेशी परन्तु मेरे लिए मेरे गुरु का भारत में ही निर्माण करें ......ताकि मैं इस '' मेक इन इण्डिया '' गुरु के चरणों में साष्टांग हो अपना परलोक संवार सकूं ...........
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७/५/१५

'' लाजिम है की हम भी फेंकेंगे .......हम फेंकेंगे '' .....3/15
चीन के बाद माबदौलत मंगोलिया जायेंगे | मंगोलिया से हमारे बहुत पुराने व्यपारिक रिश्ते है | किसी जमाने में हम उनसे लोहा लेते थे और बदले में उन्हें घोडा बेचते थे | वो बड़े सुकून के दिन थे घोडा बेच कर हमे चैन की नींद आती थी | '' मेक इन इण्डिया '' के स्लोगन की प्रेरणा हमें मंगोलों से ही मिली थी | मंगोलों ने सबसे पहली बार भारत में '' मेक इन इण्डिया '' प्रोग्राम को सफल बनाया था | उन्होंने मेक इन इण्डिया के तहत सोसायटी के हर सेक्टर में निवेश किया , खास तौर पर इन्फ्रास्टक्चर सेक्टर में तो उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है | उन्होंने यहाँ यहाँ क्या क्या नही बनवाया | कितने किले , कितने दरवाजे , कितने महल , कितने उद्यान ...फेहरिस्त बहुत लम्बी है | ताज महल , लालकिला , बुलंद दरवाजा , शालीमार गार्डन , मुगल गार्डन वगैरह तो बस् बानगी भर है | उसका दस परसेंट भी यदि आज हो जाए तो भारत दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बन जाएगा | हमारा वादा है कि हम इस कोशिश में जरूर कामयाब होंगे |
अपने बचपन का एक किस्सा हमें अक्सर याद आता है | इसकी एक झलक आप सब को फिल्म मुगले आज़म में भी मिलेगी | बादशाह अकबर की रोबदार आवाज़ में वो जाहो जलाल वाला सम्वाद जरा याद करें | जाहोजलाल , इस जुमले को उस नासमझ डायरेक्टर , के . आसिफ ने फिल्म में एक विशेषण के तौर पर इस्तेमाल किया | इतिहास के साथ ऐसी छेड़छाड़ हम बर्दाश्त नही कर सकते |
हमारी नानी बताती थीं कि , कि जलाल एक संज्ञा है , वास्तव में , बाबर का एक सबसे खास आदमी था '' जलाल '' | जलाल , पूर्वी उत्तरप्रदेश के किसी गाँव का निवासी और भोजपुरी भाषी था , बहुत मजाकिया लेकिन बेहद शक्तिशाली और वफादार | उसने बाबर को भी भोजपुरी भाषा सिखाई | बाबर जब भी दुखी या उदास होता तो वह कोई न कोई मजेदार देसी चटपटी बात से बादशाह को खुश करने की कोशिश करता और कामयाब रहता | ऐसे मौकों पर बाबर के मुँह से उसी भोजपुरी रौ में बेसाख्ता निकल पड़ता ....'' जा ..हो ...जलाल .....'' जैसे ही बादशाह यह कहता सारे दरबारी जान जाते कि बादशाहसलामत अब खुश हैं | प्रजाजनों के बीच इस खुशखबरी की मुनादी करवा दी जाती ....अवसर का लाभ उठाने के लिए दुखी जन फौरन हाजिर हो बादशाह से मनचाही मुराद पूरी करवा लेते | जलाल के इन जलवों ने प्रजाजनों के कल्याण में बहुत मदद की |
जैसा की हमेशा से होता आया है , धीरे धीरे बाबर का '' जा हो जलाल '' , जुमला ..जाहोजलाल में तब्दील हो गया .....एक किंवदन्ती की तरह यह लोक में पैठ गया ....लोग बादशाह के जाहोजलाल की कसमे खाने लगे .......लोगों को यह विश्वास हो गया कि यह जुमला तैमूरी नस्ल की कोई विशेषता है ....फिल्म मुगले आजम में अकबर यही दोहराते हुए देखे जाते है ...'' नस्ले तैमूर के जाहोजलाल की कसम '' .......लेकिन असलियत से तो सिर्फ हम वाकिफ है |
आज फिर से वो वक्त आ गया कि जलाल के जलवों से हम हिन्दुस्तान को लबरेज कर दे इसलिए सबसे पहले मुझे हिन्दुस्तान में जलाल के वंशजों की तलाश करनी है | यह मेरी मंगोलिया यात्रा का सबसे जरूरी सबब है | मैं मंगोलिया जाकर जलाल के वंशजों शिनाख्त करने की स्किल पैदा करने की ट्रेनिंग खुद लेने जा रहा हूँ ....ताकि आने वाली पीढियां मेरे जाहो जलाल की भी कसमें खाएं ..........
बाकी सोने की चिड़िया की रेप्लिका तो ले ही जा रहा हूँ ...ताकि सनद रहे .........

६/५/१५

'' लाजिम है की हम भी फेंकेंगे .......हम फेंकेंगे '' .....2/15
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माबदौलत जानिबे चीन तशरीफ फरमा है , दौरे के हवाले से हर खासओआम को इत्तिला हो ......
के अभी अभी मंगल यान ने जो लेटेस्ट तस्वीरें भेजी है उस से इस बात की पुष्टि हो गई है कि आज़ाद कश्मीर से लगायत अक्साई चीन का पूरा इलाका भारत का अभिन्न अंग है साथ ही यह भी पुष्ट हुआ कि तिब्बत का चीन से कोई सम्बन्ध नही है | आगामी दौरे में इस मुद्दे पर जो शिखर वार्ता चीन के साथ सम्पन्न होगी उसमे हम इस तथ्य को रखेंगे | वार्ता के परिणाम निश्चित तौर पे हमारे पक्ष में होंगे | अलजजीरा चैनल ब्लाक करने की मुख्य वज़ह यही थी | उसे उसकी गुस्ताखियो का माकूल और वैज्ञानिक जवाब मिल गया होगा |
वैज्ञानिकों को यह निर्देश भी दिया गया है कि दो दिन के भीतर , वे मंगल यान से भारत के गौरवशाली अतीत , अडिग और अविचलित स्वाभिमान दर्शाते वो सारे लेटेस्ट कलर्ड फोटोग्राफ्स भेंजे जिसमे ह्वेन सिंग हाथ जोड़े जगह जगह खड़े है | इस से शिखर वार्ता में हमारा पक्ष और मजबूत होगा | पूरे चीन में अभी से हमारी तूती बोल रही है | जब चीन के राष्ट्रपति इण्डिया आये थे उसी वक्त हमने अपने नक्कारखाने से निकाल कर , बाकायदा बजती हालत में यह तूती उनके साथ भेज दी थी ताकि हम जब वहाँ पहुंचे तो सारे चीन में हमारी तूती पहले से बोलती रहे | बाई द वे सोने की चिड़िया की एक रेप्लिका हम चीन ले जा रहे है .......ताकि सनद रहे ...

५/५/१५

'' लाजिम है की हम भी फेंकेंगे .......हम फेंकेंगे '' .....1/15
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गडकरी जी के अभिनव प्रयोग की अपरम्पार सफलता के मद्दे नज़र देश में '' शौचालय निर्माण परियोजना '' अनिश्चित काल के लिए स्थगित की जाती है | टीवी पर शौचालय निर्माण सम्बन्धी विज्ञापनों को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित किया जाता है | इसकी जगह अद्यतन स्थगित '' देवालय निर्माण परियोजना '' शीघ्र घोषित होगी | इसके अलावा जगह जगह , पहले से बने हुए सुलभ शौचालयों को रैन बसेरे में तब्दील का दिया जाएगा |
एतद्द्वारा यह भी घोषित किया जाता है कि देश के समस्त छोटे या बड़े , ऐतिहासिक अथवा सामान्य, राजकीय अथवा निजी सभी प्रकार के बाग बगीचों , उद्यानों की हरियाली बनाए रखने की जिम्मेवारी अब से जनसामान्य की होगी | जन सामान्य को बिना दो लोटा पानी पिए घुसने नही दिया जाएगा और ऐसे हर व्यक्ति को पांच बार विसर्जन के पश्चात ही बाहर निकलने दिया जाएगा | वी आई पी और अति वी आई पी लोगो को घर से कैन और छोटे ड्रमों में भर का लाने की छूट होगी |

१०/०५/१५ मदर्स डे पर ..

मदर्स डे पर ....
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माँ.... माँ..... माँ , आजिज कर दिया है इसने , ......मदर्स डे ......ये कब आता है , कोई मेहमां है , क्या सिर्फ एक दिन के लिए आता है ?? एक दिन रह के चला जाएगा क्या .......जरूरत से ज्यादा स्वागत देख के तो कुछ ऐसा ही लग रहा है | इतना पाखंड भी ठीक नही ...अरे नार्मल रहो , ये बाजार जो हैं न , ये बहुत चालाक फेरी वाला है , कभी कुछ, कभी कुछ हर हफ्ते बेचने चला आता है , हर बार की तरह इस बार भी ..........बस .....आज माँ को लेकर आया है , कल बाप को लेकर , परसों किसी और को लेकर आएगा ......ज्यादा ड्रामा नही ......
अब किसी रिश्ते में वो बात नही रही ......रिश्ते जो कभी किसी पुख्ता जमीन पर खड़े होते थे .....देखो , हाँ ! ठीक से देखो , जमीन भुरभुरी हो चुकी है .....जिन्हें ठोस समझते थे वो तमाम सम्बन्ध बड़ी तेज़ी से तरल हो बह रहे है | कुछ भी ऐसा नही जो इस बांड को मज़बूत कर सके |
परिवार , कितने मजबूत दुर्ग की तरह लगता था न् , कितना सुरक्षित महसूस करते थे अपने आप को हम इसमें | इसके मुख्य द्वार के दो पल्ले , एक माँ और दूसरा पिता , दोनों खुल कर अपने भीतर हमे समेट लेते थे ......भीतर तो पूरी एक दुनिया ही थी .....यह दुनिया अब उजड गई है | अब इस दुर्ग का सिर्फ द्वार बचा है | कोई झाँकने , कोई सुध लेने नही आता | साल में एक दिन पल्ला खोलने की कोशिश करने की जरूरत नही है |ऐसा नही है कि इन् दोनों पल्लों को ये बात पता नही है , इसलिए खुद ही एक दूसरे का आसरा बने टिके है ......इनका मजाक उड़ाना बंद करो ............
और भूलना नही .........दुर्ग द्वार के इन दोनों पल्लों को भी तुम्हारी जरूरत नही इन्होने भी बदलते मौसम का स्वाद चख लिया है | हाँ ! शुरू शुरू में इन्हें कुछ कसैला जरूर लगा था , लेकिन अब नही लगता है | इन्होने भी अपने द्वार में अब सांकल लगाना सीख लिया है ......
हर रिश्ता बदलता है .......
ये भी एक रिश्ता ही तो है .....पूरा बदल चुका है .......गौर से देखो ..............धरती भी माँ थी न , कैसा तो भीतर भीतर डोल रही है , भीतरी परतें जब टकराती है तो कितनी खौफनाक होती है , ये अहसास तो हुआ ही होगा , ये बडकी माई भी अब मुक्त है डोलने के लिए , अब सारे झटके बर्दाश्त नही करती , कुछ ट्रांसफर भी करती है , सो स्टेटस बदलना है तो बहुत कुछ बदलना होगा , जो अब होने से रहा , रिश्ता अब किसी की पीठ पर खुद को ढोने से रहा ....
सदी करवट बदल चुकी है और सदी के करवट बदलने के साथ मौसम तेज़ी से गर्म हुआ है ....और तमाम रिश्ते ठन्डे ..........

शनिवार, 16 मई 2015

१२ / ०५ /१५

अलाने - यार ! कोई टॉप की भूकम्प रोधी कविता सुनाओ ?
फलाने - तुम साले , बेमौके , कोई भी फरमाइश कर देते हो .....यहाँ सबकी फटी पड़ी है उधर तुम्हे कविताई की पड़ी है ....
अलाने - ये तो मेरा भी हाल है लेकिन भूकम्प के प्रभाव से ब्रेनवाशिंग जरूरी है वरना सनक जाऊँगा इसलिए भाई प्लीज़ ...भूकम्प रोधी कुछ भी चलेगा .....
फलाने - ओके ...तो अर्ज किया है ............
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उस मोहब्बत में इतनी कशिश है
कि उस जकड से निकल पाना
बहुत मुश्किल है
जानता हूँ ...
लगातार डोलती हुई धरती के बीच
पाँव जमा कर खड़ा हो पाना
बहुत मुश्किल है
जानता हूँ
मेरी जान ! कठिन समय में
मोहब्बत पे इमान लाना
बहुत मुश्किल है
जानता हूँ
जानता हूँ , के पांवो के नीचे ... जब जमीन हिल रही हो
खिड़कियाँ , दरवाजे , सीढियां , दीवारें , एक दूसरे से मिल रही हो
छत और फर्श में फर्क कर पाना , अपने सिवा किसी और के बारे में सोच पाना
बहुत मुश्किल है
शायद ...
सबसे ज्यादा मुश्किल है
इन वक्तों में
जब प्राइमरी सेकेंडरी
१२ , १६ ..३२... मेगा पिक्सेल
के फोन कैमरे से
एक स्टिल फोटो लेना
भी सम्भव नही
ऐसे वक्तों में
सबसे आसान होता है
हिलते कांपते खुद स्टिल हो जाना...आ आ
उसी फोटोग्राफ
की तरह ....
जो
तब भी
मेरी बाईं जेब में होगा
तू ....
वो तस्वीर निकाल लेना..
और
अपनी
बाईं जेब में
रख
लेना .............................
ये .........................................आख़िरी झटका होगा
भू
कम्प
का ......
....
..
.
.
अलाने - तुमने , किसी और दुनिया में पहुंचा दिया बे ....
फलाने - हाँ .....उसी दुनिया में जिसका ख़्वाब देखता हूँ मैं .....जहाँ मोहब्बतों में इतनी गहराई हो ...सम्बन्ध इतने सान्द्र हो , वास्तविक हों ...
..
अलाने - अच्छा ये बता ...किसकी तस्वीर की बात कर रहा था तू .....तूने आज तक अपनी मोहब्बत के बारे में नही बताया....... जब कि मैं तेरा जिगरी , तेरा लंगोटिया , तेरा पक्का यार हूँ ......इतनी मोहब्बत .....उफ्फ ...आखिर किस से ...
फलाने - तुझसे ........हाँ तुझसे , पागल और कौन है मेरा ........और हो भी कौन सकता है ...
पता नही क्यों ऐसी धारणा है कि प्रेम की सबसे सान्द्र और सर्वोत्तम अभिव्यक्तियों का सर्वाधिकार स्त्री पुरुष सम्बन्धों में ही सुरक्षित है .........सीमित है ......पता नही ...