शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद -55/05/04/15

यक्ष -
किसी भी निर्णायक राजनीतिक युद्ध में , आसन्न पराजय की स्थिति में दलपति के पास कौन कौन से विकल्प होते हैं ??
युधिष्ठिर -
आसन्न पराजय की स्थिति में , दलपति के पास पूर्व में मात्र दो विकल्प होते थे या तो वह बहादुरी से लड़ते लड़ते '' वीर-गति '' का वरण करे या फिर जीवन का भिक्षादान प्राप्त कर आजीवन '' दुर्गति '' को प्राप्त हो | कलिकाल की २१वीं सदी में , राम मंदिर आंदोलन के कर्णधार माननीय आडवाणी जी ने एक अन्य विकल्प का आविष्कार किया , जिसे '' आडवाणी- गति'' के नाम से जाना जाता है |
यक्ष -
'' आडवाणी गति '' की क्या विशेषताएं हैं ..
युधिष्ठिर -
'' आडवाणी गति '' प्राप्त व्यक्ति को एक आभासी सम्मानलोक में निर्वासित कर दिया जाता है | इस लोक में वह जीवन यापन और निर्बाध विचरण हेतु पूर्ण स्वतंत्र होता है परन्तु इहलोक में आते ही ,वह इस अधिकार से वंचित हो जाता है |
उदाहरणार्थ ..यहाँ चरण स्पर्श तो होगा पर सम्मान रहित , उसे मंच तो मिलेगा पर उसका उपयोग वह नहीं कर सकेगा .....उसे सरकारी कार्यक्रमों का निमंत्रण तो मिलेगा पर उसका प्रोटोकाल नहीं ..........उसके नाम के आगे अनिवार्यतः '' जी '' लगेगा पर वह मात्र व्यंग्यार्थ होगा , सम्मानार्थ नहीं , केजरीवाली तकियाकलाम की तरह नितांत निष्प्राण ........आदि आदि

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