शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद -46/02/04/15

यक्ष -
आजकल स्त्रीमुक्ति के विज्ञापनो के पीछे क्या कारण है ?
युधिष्ठिर -
कारण बताने से पहले बशीर बद्र का एक शेर अर्ज करना चाहूँगा .....
मुझे इश्तेहार सी लगती है ये मोहब्बतों की कहानिया
जो कहा नही वो सुना करो , जो सुना नही वो कहा करो ....
बस् यही मूल है ,ऐसे विज्ञापनों में , जो सुना नही गया उसे ही मुझे कहना है , वही कारण है .....
ऐसे तमाम विज्ञापन मूलतः बाज़ार के विस्तार की आकांक्षा से अभिप्रेत है | समाज में स्त्रियों का एक बड़ा वर्ग है , जो खर्च करने की सामर्थ्य के बावजूद युगों युगों से मानस में पैठे मूल्य मान्यताओं के नाते अनेकानेक संकोच और हिचकिचाहट के द्वंद में फंसा रहता है | ऐसे विज्ञापन उसी मानस पर आघात है ताकि वह मानसिक तौर पर ऐसे द्वंद से मुक्त हो जाए .......यह विक्रय और विपणन प्रबंधन के बुनियादी सूत्र के तौर पर पढाया भी जाता है कि .......पहले देखो कि खरीदने की क्षमता है या नही , यदि है तो अगला कदम उसे मानसिक तौर पर तैयार करो , उसके लिए जरूरी साबित करो ........यही हो रहा है हलांकि अत्यंत सीमित अर्थों में यह स्त्रियों के हक में भी है | ऐसा हमेशा से होता आया है कि बाज़ार जिन उपकरणों का इस्तेमाल अपने हक में करता है तो उसके आनुषंगिक प्रभाव उसके नियंत्रण में नही होते ....लेकिन बाज़ार इसमें सफल तो हो ही जाता है कि मूल उद्देश्य को प्रगतिशीलता के रुपहले परदे में छिपा सके ......

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