शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद -40/01/04/15

यक्ष -
राजन ! आर्यावर्त और उससे अलग हुए उसके पश्चिमी पट्टीदार में परस्पर कैसा रिश्ता है ...
युधिष्ठिर -
आज भी दोनों के रिश्तों में पट्टीदारी तत्व ही प्रमुख है | अपने आपसी रिश्तों को एक प्रहसन के रूप में दोनों राज्य प्रतिदिन वाघा सीमा पर प्रस्तुत करते है | नाटकीय क्रोध में फ़ैली हुई आँखें , एक दूसरे को छद्म चुनौती देती हुई , आपाद मस्तक भंगिमाएं , हास्यास्पद आक्रामकता का चरम प्रस्तुत करते , प्रोग्राम्ड यंत्रमानव की भांति परिचालित दोनों पक्ष के कुछ वर्दीधारी विचित्रवीर्य यह प्रस्तुति देते है | इस प्रहसन के बीच दोनों राज्यों का ध्वजा अवतरण होता है | दोनों ओर की जनता , कृत्रिम युद्ध के इस स्वांग से भावुक हो उन्मादी नारे लगा इस प्रहसन को जीवंत बनाने में अपना अपने स्तर पर योगदान करती और युद्ध विजय के छद्म पर ताली बजाती है .......आइसक्रीम , कोल्ड ड्रिंक , बर्गर पिज्जा खाती घर जाती है .....
रास्ते में , एक नज़र अटारी गाँव पर भी डाल जाती , जहाँ अटारी नामक सीमान्त रेलवे स्टेशन है , जो सड़क से साफ़ नही दिखता ..यहाँ कोई प्रहसन नही होता ......यहाँ पार्सल घर है , पार्सल बाबू है , माल बुकिंग का कारोबार है , टिकट विंडो है , टी टी हैं , आर पी एफ , जी आर पी है , कस्टम है , चेकिंग और आयात निर्यात का धंधा भारी है ,बरसों से बदस्तूर जारी है ,दोनों पट्टीदारों के आपसी वाणिज्यिक सम्बन्ध बेहतर करने वाले दलाल है ताकि व्यापार सुविधाजनक तरीके से होता रहे , सब कुछ राजी खुशी से चलता रहे , नाराजगी और नाखुशी वाघा बार्डर के लिए स्थान्तरित है ..
सीमा के इस खित्ते में वसुधैव कुटुम्बकम की ध्वजा लहराती है ......यहाँ जनता भी है .....जो इस पसमंजर में बाकायदा आती है , जाती है , पर ताली नही बजाती है .......
यहाँ सब सामान्य है .....जनता सब कुछ जानती है , सब कुछ सामान्य हो , तो ताली नही बजायी जाती है ........
यक्ष के हाथ युधिष्ठिर के इस जवाब पर ताली बजाने के लिए सहसा उठे , लेकिन मूर्छित पांडवों को देख ...युधिष्ठिर को देख .......प्यासी पांचाली की कल्पना कर , ठिठक गए ......

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