सोमवार, 2 नवंबर 2015

८४ / १९/४/१५

यक्ष -
इतवार क्यों आता है ??
युधिष्ठिर -
इतवार , समाज में अपनी गढी गई छवि से बेहद क्षुब्ध था , गेरेगेरियन कैलेंडर की इजाद के बाद न जाने वह कौन सा मनहूस मरहला था कि, जब लोग यह मानने लगे के इतवार लोगों के भीतर निट्ठल्लेपन और आरामतलबी का भाव जगाता है | यही चेक करने इतवार खुद हर संडे आने लगा .....बिलकुल रियल टाइम चेकिंग ......इसके नतीजे चमत्कारिक रूप से उसकी गढ़ी गयी छवि से बिल्कुल इतर परिणाम देने वाले साबित हुए .......उसने खुद देखा कि दुनिया तो वास्तव में मुझ इतवार के भरोसे ही चल रही है .......बाकी दिन उसने लोगों को तमाम अलहदा कामों में जुटा पाया ......
बस् एक इतवार के आने से लोगों में अपने आप को वैल्यू करने का सेन्स डेवलप होने लगा है ........लोग घर परिवार के तमाम पेंडिंग काम निपटाने लगे और एक सामाजिक प्राणी के तौर पर अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत होने और अन्य समाजोपयोगी कामों में भी ध्यान देने लगे है ........वास्तविक छवि और गढी हुई छवि के फर्क को खुद टेस्ट करने के बाद अब इतवार बहुत खुश है , वह तो अब रोज़ आना चाहता है , लोग भी उसका स्वागत करने के लिए तैयार हैं परन्तु इतवार की लोकप्रियता से घबरा कर सारे ग्रह एक जुट हो उसके रास्ते की बाधा बने हुए है , जैसे ही इतवार घर से निकलता है सबसे पहले सोम नामक छोटा सा परन्तु अत्यंत प्रभावी उपग्रह उसका रास्ता रोक लेता है , उसे परास्त करते ही लाल पीले तेवर वाला मंगल .....ऐसे ही अंत में शनि महराज स्वयम ........परन्तु इतवार इन सारी बाधाओं को पार करते , सबसे लड़ते भिड़ते हमारे जीवन में प्रवेश करता है , इसलिए हमारे मन में , इतवार के इस कल्याणकारी रूप के सामने सहज ही नत होने का भाव जाग उठता है ......
ईतवार का आना समाज के व्यापक हित में कितना जरूरी है ......अब यह सबकी समझ में आने लगा है ..........इतवार का छवि भंजन अब हर संडे समारोहपूर्वक मनाया जाना प्रारम्भ हो चुका है | इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि मनुष्य अपने जीवन का हर महत्वपूर्ण काम इतवार के आने तक मुल्तवी रखता है ..... इतवार का आना एक मुहावरा सा बनता जा रहा है ........जैसे इतवार आने दीजिए , आपका काम कर देंगे पक्का .......

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