सोमवार, 2 नवंबर 2015

८५ / २०/४/१५

यक्ष - अच्छे दिन के नारे के उत्पत्ति कैसे हुई ?
युधिष्ठिर - कलियुग की २१ वीं सदी के दूसरे दशक में हस्तिनापुर में भीषण सत्तासंघर्ष हुआ | नए उम्मीदवार को सफलता हेतु कई चीज़ों की दरकार थी लेकिन उसका खजाना बिलकुल खाली था , इसके पास न ही कोई ऐसा आदर्श पुरुष था जो जनता में कोई आस्था पैदा करता न नारे , न उद्धरण ....सो उसने देश और दुनिया भर की विरासतों में सेंध मारी शुरू की .....सरदार पटेल की प्रतिमा , नेहरू के उद्धरण , भगत सिंह के पगड़ी और भी न जाने क्या क्या .....
सूची काफी लम्बी अतः इस नारे के बारे में कुछ भी कहने के बजाय बस् एक कविता सुनाता हूँ .....
आ रहे हैं अच्छे दिन
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सब कुछ बदलता है
कानून का पहिया बदल जाता है
बिना थमे |
बारिश के बाद बढिया मौसम
पलक झपकते ही
संसार उतार देता है
अपने मैले कपड़े
दस हजार मीलों तक
फैला है भूदृश्य
बेल बूटों से सुसज्जित
मुलायम धूप
मंद हवाएं , मुस्कुराते फूल |
ऊंचे ऊंचे पेड़ों से झरती पत्तियों
एक साथ चहक उठे सारे पंछी |
मनुष्य और पशु जाग उठे नवजीवन लेकर |
इस से बढ़ कर क्या हो सकता है प्राकृतिक ?
दुःख के बाद आती है खुशी |
खुशी , किसी के लिए जेल से रिहाई जैसी |
----- हो ची मिन्ह

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