शनिवार, 16 मई 2015

१२ / ०५ /१५

अलाने - यार ! कोई टॉप की भूकम्प रोधी कविता सुनाओ ?
फलाने - तुम साले , बेमौके , कोई भी फरमाइश कर देते हो .....यहाँ सबकी फटी पड़ी है उधर तुम्हे कविताई की पड़ी है ....
अलाने - ये तो मेरा भी हाल है लेकिन भूकम्प के प्रभाव से ब्रेनवाशिंग जरूरी है वरना सनक जाऊँगा इसलिए भाई प्लीज़ ...भूकम्प रोधी कुछ भी चलेगा .....
फलाने - ओके ...तो अर्ज किया है ............
.........................................................
उस मोहब्बत में इतनी कशिश है
कि उस जकड से निकल पाना
बहुत मुश्किल है
जानता हूँ ...
लगातार डोलती हुई धरती के बीच
पाँव जमा कर खड़ा हो पाना
बहुत मुश्किल है
जानता हूँ
मेरी जान ! कठिन समय में
मोहब्बत पे इमान लाना
बहुत मुश्किल है
जानता हूँ
जानता हूँ , के पांवो के नीचे ... जब जमीन हिल रही हो
खिड़कियाँ , दरवाजे , सीढियां , दीवारें , एक दूसरे से मिल रही हो
छत और फर्श में फर्क कर पाना , अपने सिवा किसी और के बारे में सोच पाना
बहुत मुश्किल है
शायद ...
सबसे ज्यादा मुश्किल है
इन वक्तों में
जब प्राइमरी सेकेंडरी
१२ , १६ ..३२... मेगा पिक्सेल
के फोन कैमरे से
एक स्टिल फोटो लेना
भी सम्भव नही
ऐसे वक्तों में
सबसे आसान होता है
हिलते कांपते खुद स्टिल हो जाना...आ आ
उसी फोटोग्राफ
की तरह ....
जो
तब भी
मेरी बाईं जेब में होगा
तू ....
वो तस्वीर निकाल लेना..
और
अपनी
बाईं जेब में
रख
लेना .............................
ये .........................................आख़िरी झटका होगा
भू
कम्प
का ......
....
..
.
.
अलाने - तुमने , किसी और दुनिया में पहुंचा दिया बे ....
फलाने - हाँ .....उसी दुनिया में जिसका ख़्वाब देखता हूँ मैं .....जहाँ मोहब्बतों में इतनी गहराई हो ...सम्बन्ध इतने सान्द्र हो , वास्तविक हों ...
..
अलाने - अच्छा ये बता ...किसकी तस्वीर की बात कर रहा था तू .....तूने आज तक अपनी मोहब्बत के बारे में नही बताया....... जब कि मैं तेरा जिगरी , तेरा लंगोटिया , तेरा पक्का यार हूँ ......इतनी मोहब्बत .....उफ्फ ...आखिर किस से ...
फलाने - तुझसे ........हाँ तुझसे , पागल और कौन है मेरा ........और हो भी कौन सकता है ...
पता नही क्यों ऐसी धारणा है कि प्रेम की सबसे सान्द्र और सर्वोत्तम अभिव्यक्तियों का सर्वाधिकार स्त्री पुरुष सम्बन्धों में ही सुरक्षित है .........सीमित है ......पता नही ...

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