रविवार, 17 मई 2015

१०/०५/१५ मदर्स डे पर ..

मदर्स डे पर ....
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माँ.... माँ..... माँ , आजिज कर दिया है इसने , ......मदर्स डे ......ये कब आता है , कोई मेहमां है , क्या सिर्फ एक दिन के लिए आता है ?? एक दिन रह के चला जाएगा क्या .......जरूरत से ज्यादा स्वागत देख के तो कुछ ऐसा ही लग रहा है | इतना पाखंड भी ठीक नही ...अरे नार्मल रहो , ये बाजार जो हैं न , ये बहुत चालाक फेरी वाला है , कभी कुछ, कभी कुछ हर हफ्ते बेचने चला आता है , हर बार की तरह इस बार भी ..........बस .....आज माँ को लेकर आया है , कल बाप को लेकर , परसों किसी और को लेकर आएगा ......ज्यादा ड्रामा नही ......
अब किसी रिश्ते में वो बात नही रही ......रिश्ते जो कभी किसी पुख्ता जमीन पर खड़े होते थे .....देखो , हाँ ! ठीक से देखो , जमीन भुरभुरी हो चुकी है .....जिन्हें ठोस समझते थे वो तमाम सम्बन्ध बड़ी तेज़ी से तरल हो बह रहे है | कुछ भी ऐसा नही जो इस बांड को मज़बूत कर सके |
परिवार , कितने मजबूत दुर्ग की तरह लगता था न् , कितना सुरक्षित महसूस करते थे अपने आप को हम इसमें | इसके मुख्य द्वार के दो पल्ले , एक माँ और दूसरा पिता , दोनों खुल कर अपने भीतर हमे समेट लेते थे ......भीतर तो पूरी एक दुनिया ही थी .....यह दुनिया अब उजड गई है | अब इस दुर्ग का सिर्फ द्वार बचा है | कोई झाँकने , कोई सुध लेने नही आता | साल में एक दिन पल्ला खोलने की कोशिश करने की जरूरत नही है |ऐसा नही है कि इन् दोनों पल्लों को ये बात पता नही है , इसलिए खुद ही एक दूसरे का आसरा बने टिके है ......इनका मजाक उड़ाना बंद करो ............
और भूलना नही .........दुर्ग द्वार के इन दोनों पल्लों को भी तुम्हारी जरूरत नही इन्होने भी बदलते मौसम का स्वाद चख लिया है | हाँ ! शुरू शुरू में इन्हें कुछ कसैला जरूर लगा था , लेकिन अब नही लगता है | इन्होने भी अपने द्वार में अब सांकल लगाना सीख लिया है ......
हर रिश्ता बदलता है .......
ये भी एक रिश्ता ही तो है .....पूरा बदल चुका है .......गौर से देखो ..............धरती भी माँ थी न , कैसा तो भीतर भीतर डोल रही है , भीतरी परतें जब टकराती है तो कितनी खौफनाक होती है , ये अहसास तो हुआ ही होगा , ये बडकी माई भी अब मुक्त है डोलने के लिए , अब सारे झटके बर्दाश्त नही करती , कुछ ट्रांसफर भी करती है , सो स्टेटस बदलना है तो बहुत कुछ बदलना होगा , जो अब होने से रहा , रिश्ता अब किसी की पीठ पर खुद को ढोने से रहा ....
सदी करवट बदल चुकी है और सदी के करवट बदलने के साथ मौसम तेज़ी से गर्म हुआ है ....और तमाम रिश्ते ठन्डे ..........

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