सोमवार, 2 नवंबर 2015

७८ / १६/४/१५

यक्ष -
पूर्व के प्रधानों और वर्तमान प्रधान के विदेशी दौरों में क्या बुनियादी अंतर है ?

युधिष्ठिर -
पूर्व के परधान और आज के परधान की यात्राओं में अनेकों ऐसे अंतर हैं जिन्हें बुनियादी माना जा सकता है | जैसे पहले जब परधान जाते थे तो अपना सतुआ पिसान बाँध के जाते थे , वहाँ उनका स्वागत करना तो दूर ..पहुँचते ही खुद ही सवारी ढूँढना पड़ता था ...किस्मत अच्छी होती तो ऑटो वगैरह मिल जाता वरना पैदले रास्ता नापना पड़ता | कोई अपना हित नात बुला लेता तो भोजन भजन का इंतजाम हो जाता नहीं तो कहीं रोड के किनारे लिट्टी चोखा खुद ही लगा के खाना पड़ता | न टी वी , न अखबार अ रेडियो किसी पर ढंग से एक समाचार होता .....पौने नौ की न्यूज़ अगर छुट गई तो पाता भी चलता कि वहाँ कोई समझौता ओम्झौता भी हुआ हवाया है | वैसे भी वो किसी काम लायक तो होते नहीं थे ..देश तो भगवान भरोसे चलता था ....पहले वाले परधान लोग थोडा क्रैक भी थे ,जहाँ जाते, गुट निरपेक्षता का राग अलापते उन्हें इतना भी नही पता होता था कि धूप में चप्पल चटकाने का समय बीत चुका बल्कि चप्पल सर माथे लगाने से ही राम राज्य आना है लेकिन कौन समझाएं ......आज के परधान डायरेक्ट गुटबाजी का गीत गाते है , बेसुरे न हो जाएँ इसलिए सुखविंदर जैसे प्रोफेशनल्स उनकी तरफ से ये काम करते है | सारे जहाँ को जब तक चिल्ला चिल्ला के न बताया जाए कि हम हैं इण्डिया वाले तब तक पता कैसे चलता कि इण्डिया से कोई आया है ......यहीं पुराने परधान माट खा जाते थे | आज जब नेतागिरी एक बदनाम पेशा हो गया है तब नए वाले ने इसे भांप लिया फौरन रॉक स्टार की इमेज बना ली | पूरी मीडिया इन्हें रॉक स्टार बुलाती है और जगह जगह पूरा रॉक शो आयोजित होता है तो थोडा भीड़ हो जाती है | प्रधान जी को तो थोडा एक्टिंग वैक्टिंग करनी होती है बस् ....यही कलाकार अगर अकेले कार्यक्रम करते है तो इस से दस बीस गुणा भीड़ होती है लेकिन उसका टिकट लगता है | कार्यक्रम कंट्रोल में रहे इसके लिए परधान जी के नाम से प्रोग्राम प्रचारित होता है ताकि भीड़ न उमड़ पड़े और एंट्री भी फ्री ....

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