यक्ष - कोई मन की बात कब और क्यों करता है ..
युधिष्ठिर - मन की बात , कोई तब करता है जब उसे यह भय अथवा आशंका हो कि उसके मुँह की बात पर कोई यकीन नही करेगा | यह दरअसल उसके भीतर का भय होता है | जब मुँह और मन की बात में द्वैत होता है तब यह भय उसके भीतर ही भीतर और भयावह हो जाता है लिहाजा मन की बात को बार बार बताते रहना उसकी स्वयं की आश्वस्ति के लिए , एक कारगर मनोवैज्ञानिक उपचार है |
इसके अलावा किसी मनमीत की अनुपस्थिति भी , आदमी को सार्वजनिक तौर पर मन की बात करने पर मजबूर करती है .....
युधिष्ठिर - मन की बात , कोई तब करता है जब उसे यह भय अथवा आशंका हो कि उसके मुँह की बात पर कोई यकीन नही करेगा | यह दरअसल उसके भीतर का भय होता है | जब मुँह और मन की बात में द्वैत होता है तब यह भय उसके भीतर ही भीतर और भयावह हो जाता है लिहाजा मन की बात को बार बार बताते रहना उसकी स्वयं की आश्वस्ति के लिए , एक कारगर मनोवैज्ञानिक उपचार है |
इसके अलावा किसी मनमीत की अनुपस्थिति भी , आदमी को सार्वजनिक तौर पर मन की बात करने पर मजबूर करती है .....
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