यक्ष -
स्क्रीन शाट्स क्या होते है और क्यों लिए जाते हैं |
युधिष्ठिर -
स्क्रीन शाट्स अजीबो गरीब हवाएं है जो माहौल को तो गर्म कर देती है परन्तु जिनकी तासीर सर्द होती है | इसके प्रभाव से कईयों की कंपकंपी छूट जाती है | सर्द तासीर होने के कारण यह हवा खुश्की पैदा करती है , जिससे चेहरे का मेकप सूख जाता है और यह पपड़ी एक झटके में गिर जाती है | स्क्रीन शाट्स नेगेटिव् इनर्जी से लबरेज होते हैं और इसलिए लिए जाते हैं ताकि सनसनी पैदा हो सके | इनका और कोई सार्थक और सकारात्मक रोल नहीं होता |
यक्ष -
स्क्रीन शाट्स किस प्रकार के लोग लेते हैं ?
युधिष्ठिर -
यह हर प्रकार के लोग ले सकते है परन्तु सांख्यिकी विभाग के आंकड़े बताते है कि ऐसा करने में महिलाएं आज भी पुरषों से आगे है ....
यक्ष -
ऐसा क्यों है कि इसमें महिलाएं आगे हैं ?
युधिष्ठिर -
ऐसा इसलिए है कि समाज में पितृसत्ता के मूल्य बहुत गहरे पैठे हैं बस् यह आभासी जगत ही ऐसा है जहाँ महिलाएं एक हद तक स्वतंत्र है | इसलिए , स्क्रीन शाट्स के जरिये वे पुरुष और महिला सम्बन्धों के पीछे की मनोरचना के आधार पर फीमेल विक्टिमाईजेशन को सुबूत के साथ प्रूव करना चाहती हैं और अक्सर इसमें सफल रहती हैं | यक्ष -
स्क्रीन शाट्स पर तुम्हारी क्या राय है ?
युधिष्ठिर -
मेरा स्पष्ट मानना है कि अब भी हम आधुनिक मूल्य बोध से लैस समाज नहीं है | स्क्रीन शाट्स के जरिये महिलाए भी यौन सम्बन्धों के प्रति अपने पिछड़ेपन का ही सुबूत देती है जैसा कि पुरुष | स्त्री पुरुष में परस्पर आकर्षण प्रकृति प्रदत्त है और यौन सम्बन्ध इसका अविभाज्य अंग है | यौन- स्वतंत्रता , यौन स्वछंदता से होते हुए यौन अराजकता में न बदल जाए इसलिए हर समाज इसका नियमन करता है | एक आधुनिक और विकसित समाज को क्रमशः नियमन की भी जरूरत नही होती वह मूल्य के तौर पर इन्हें जीने लगता है , तब ही स्वस्थ यौन संस्कार और यौन संस्कृति निर्मित होती है .....
आधुनिक मूल्य को जीने वाले पुरुष और स्त्री यौन आग्रहों के प्रति वही द्रष्टि रखेंगे जो कोई दो बालिग़ स्वतंत्र निर्णय लेने में समर्थ व्यक्ति किसी भी आग्रह के प्रति रखेंगे | आपसी सहमति और असहमति का सम्मान करेंगे | इसे किसी चारित्रिक दुर्बलता से नहीं जोड़ के देखेंगे |
मसलन , पांचाली ( मेरी पत्नी न होती तब भी ) और मेरे सम्बन्ध तब ही स्थापित होंगे जब दोनों की मर्जी होगी | ऐसा प्रस्ताव वह भी कर सकती है और मैं भी और अस्वीकार भी दोनों ही कर सकते हैं | यह आग्रह न ही चारित्रिक दुर्बलता है न ही किसी प्रकार के सार्वजनिक कौतूहल या विवेचना का विषय | यौन आग्रहों की प्रकृति भी उसी तरह की है जैसे कि हम दोनों और कोई अन्य अजनबी वयस्क स्त्री पुरुष वन विहार , या किसी अन्य क्रीडा हेतु कोई आग्रह करें ..... एक पिछड़ा समाज यौनिकता को नितांत भिन्न मनोवैज्ञानिक भाव का दर्ज़ा देने लगता है ......वह इसे सहज मानवीय भाव के बजाय इसमें प्रच्छन कूट भंगिमा पढ़ने लगता है .....यह हमारे समाज के यौनिकता की विकृत अवस्थिति दर्शाता है ....फिलहाल इन विसंगतियों , विकारों से सचेत हो जूझना है .....हमे लांछना के बजाय समाज की मूल्य वंचना पर रोना है और साथ ही इसे धोना भी है